Delhi High Court On Medical Insurance: बीमा कंपनियों (Insurance Companies) और अस्पतालों के बीच लटकते बिल का भुगतान को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली की रेखा सरकार, केंद्र सरकार और बीमा कंपनियों को चेतावनी जारी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और बीमा कंपनियों से कहा कि मरीजों के बिलों का निस्तारण तत्काल और ईमानदारी से करें। वरना अदालत को हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की।

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कोर्ट ने दोनों को आदेश दिया है कि वे बीमा कंपनियों, मेडिकल काउंसिल और बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDA) के साथ समन्वय बनाकर मेडिकल बिलों के निपटारे की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाएं।

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बता दें कि बीमारी के बाद राहत की उम्मीद लिए अस्पताल से छुट्टी लेने जा रहे मरीजों को अक्सर एक और मानसिक जंग लड़नी पड़ती है बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच लटकते बिल का भुगतान का। दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा यह कोई अनजाना दर्द नहीं है बल्कि एक आम सच्चाई है कि इलाज से उबरते ही मरीज और उनके परिजन एक नई मानसिक पीड़ा का सामना करते हैं। अस्पताल से छुट्टी के वक्त लंबा इंतजार कागजों की खानापूर्ति और बीमा भुगतान में देरी।

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क्या है पूरा मामला?

दरअसल, वकील शशांक गर्ग ने आरोप लगाया था कि साल 2013 में दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में उनकी सर्जरी हुई थी। उन्हें कैशलेस बीमा योजना के तहत कवर किया गया था, लेकिन फिर भी अस्पताल ने 1.73 लाख रुपये की पूरी रकम एडवांस में जमा करवाई। बाद में बीमा कंपनी ने दावा किया कि उसने पूरा भुगतान कर दिया है, लेकिन अस्पताल ने कहा कि उसे कम राशि मिली और 53,000 रुपए की कटौती मरीज की जमा राशि से कर ली गई।

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वकील शशंक गर्ग ने इसे धोखाधड़ी करार देते हुए अस्पताल कर्मचारियों पर आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की। हालांकि कोर्ट ने आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण याचिका खारिज कर दी, लेकिन उसने इस घटनाक्रम को व्यापक सामाजिक समस्या के रूप में देखा। हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछले वर्षों के दौरान इस मसले पर कई बार नीतिगत सुझाव आए हैं। यहां तक कि NHRC ने मरीज अधिकार चार्टर तक का प्रस्ताव रखा था। बावजूद इसके, आज तक कोई ठोस नियामक प्रणाली लागू नहीं हो सकी है।

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अदालत ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब सरकारें केवल सुझावों तक सीमित न रहे बल्कि तत्काल कार्रवाई करे। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अस्पताल, बीमा कंपनियां और मरीजों के बीच संवाद और भुगतान प्रक्रिया शीघ्र और निष्पक्ष हो।

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