दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने एक अहम आदेश सुनाते हुए एक पिता को कोई राहत देने से इनकार कर दिया और उसकी 10 साल की कैद की सजा बरकरार रखी। आरोपी पर आरोप था कि उसने अपनी ही 9 साल की बेटी के साथ बार-बार रेप किया। हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने सभी सबूतों और गवाहियों का सही मूल्यांकन किया था और उसमें किसी भी तरह की खामी नहीं पाई गई। इसलिए आरोपी की सजा को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता।

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सितंबर 2017 में यह मामला उजागर हुआ, जब पीड़ित बच्ची ने साहस दिखाते हुए अपनी कक्षा की शिक्षिका को बताया कि उसके साथ लगातार दर्दनाक घटना घट रही है। शिक्षिका ने तुरंत इसे गंभीरता से लिया और स्कूल प्रशासन की मदद से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। दर्ज शिकायत में बच्ची ने आरोप लगाया कि उसका पिता ही रोज़ाना उसके साथ बलात्कार करता था।

बयान बदले फिर भी सबूतों ने दिलाई सजा

जब मामला अदालत पहुंचा, तो सुनवाई के दौरान पीड़ित बच्ची और उसकी मां अपने पहले दिए गए बयानों से मुकर गईं और पिता के खिलाफ आरोपों को नकार दिया। दोनों ने दिल्ली पुलिस का समर्थन करने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि होस्टाइल गवाह की गवाही को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता, यदि वह अन्य साक्ष्यों से मेल खाती हो। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शुरुआती शिकायत, मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 (CrPC) के तहत दर्ज बयान, मेडिकल-लीगल सर्टिफिकेट और फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट—all एक-दूसरे से मेल खाते हैं। इसके अलावा, क्लास टीचर की गवाही को अदालत ने विश्वसनीय और मज़बूत माना, जिसने सबसे पहले बच्ची की आपबीती सुनी और प्रशासन को इसकी जानकारी दी थी।

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आरोपी पिता की दलील कोर्ट ने की खारिज

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बच्ची और मां का अदालत में होस्टाइल हो जाना अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर नहीं करता, क्योंकि मेडिकल और वैज्ञानिक सबूत सीधे तौर पर आरोपी पिता की ओर इशारा करते हैं।

वहीं, आरोपी पिता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि पीड़िता और उसकी मां ने खुद आरोपों से इनकार कर दिया है, इसलिए अभियोजन का केस टिकता नहीं है। बचाव पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि पूरा मामला क्लास टीचर की साजिश है। वकील का कहना था कि आरोपी का क्लास टीचर से पहले से विवाद था और उसी वजह से उसने बच्ची को उकसाकर झूठे आरोप लगवाए। हालांकि, अदालत ने माना कि क्लास टीचर की गवाही सुसंगत और विश्वसनीय है और इसे मेडिकल और फॉरेंसिक रिपोर्ट का मज़बूत समर्थन प्राप्त है।

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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी पिता की ओर से यह दलील दी गई कि बच्ची और उसकी मां ने अदालत में आरोपों से इनकार कर दिया है और यह पूरा मामला क्लास टीचर की साज़िश है। बचाव पक्ष ने कहा कि क्लास टीचर से आरोपी का विवाद था और उसी के कारण बच्ची ने झूठे आरोप लगाए। लेकिन जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने इस दलील को पूरी तरह खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त न तो किसी भी गवाह की विश्वसनीयता को हिला सका और न ही मेडिकल रिपोर्ट और फॉरेंसिक साइंस लेब (FSL) की रिपोर्ट में कोई खामी साबित कर पाया। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने सभी तथ्य और सबूत का गहराई से मूल्यांकन किया था और दोषसिद्धि का फैसला पूरी तरह उचित था। इसी कारण, आरोपी पिता को दी गई 10 साल की सजा को बरकरार रखा गया।

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