दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 24 के तहत पत्नी अंतरिम भरण-पोषण का दावा कर सकती है, चाहे वह अपने पति के साथ भरण-पोषण की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए किए गए समझौते पर अमल न करे. 16 दिसंबर के फैसले (बाद में जारी किया गया) में अदालत ने स्पष्ट किया कि एक अनइंप्लीमेंटिड समझौता पति-पत्नी को उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता.
16 दिसंबर को न्यायालय ने एक पत्नी द्वारा 15 अप्रैल को पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ दाखिल की गई अपीलपर सुनवाई की, जिसमें उसे अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था, जिसमें जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस सौरभ बनर्जी की पीठ ने कहा, ‘चूंकि उक्त समझौते पर कार्रवाई नहीं की गई है, इसलिए इसे पीलकर्ता (पत्नी) या प्रतिवादी (पति) पर बाध्यकारी नहीं माना जा सकता.’
फैमिली कोर्ट ने निर्णय दिया कि पत्नी दिसंबर 2012 में किए गए समझौते की शर्तों से बंधी हुई है, जबकि समझौता कभी लागू नहीं हुआ था. हाईकोर्ट ने इस बहस को गलत ठहराया और कहा कि एचएमए की धारा 24 के तहत पत्नी को उसके वैधानिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. एचएमए की धारा 24, निश्चित रूप से, ऐसे जीवनसाथी के लिए अंतरिम भरण-पोषण का प्रावधान करती है जिसके पास मुकदमेबाजी के खर्चों को वहन करने या खुद का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है.
हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि एक असंपादित समझौते द्वारा वैधानिक अधिकार को नकारा नहीं जा सकता था. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत मेंदीरत्ता ने कहा कि पारिवारिक अदालत का आदेश ‘पूरी तरह से अनुचित’ था क्योंकि उसने गलत तरीके से अप्रवर्तनीय समझौते को बाध्यकारी मान लिया था. सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत का आदेश खारिज कर मामले को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया.
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