दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि ससुराल में महिला का यौन उत्पीड़न भी दहेज प्रताड़ना का हिस्सा माना जाएगा, इसके लिए अलग से सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि यदि महिला अपने ससुरालवालों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाती है, तो इसे दहेज उत्पीड़न के अंतर्गत बताई गई शारीरिक क्रूरता का गंभीर रूप माना जा सकता है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दहेज प्रताड़ना और दुष्कर्म के अपराध आपस में इस तरह जुड़े होने चाहिए कि वे एक ही घटना या घटनाक्रम का हिस्सा हों। ऐसे मामलों में इन्हें अलग-अलग अपराध मानकर अलग सुनवाई करना आवश्यक नहीं है। पीठ ने कहा कि यदि ससुरालवालों द्वारा की गई शारीरिक क्रूरता का स्वरूप दुष्कर्म जैसा गंभीर है, तो इसे क्रूरता के अपराध से अलग नहीं किया जा सकता।

दिल्ली हाईकोर्ट एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए उसके ससुर और देवर को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया गया था। महिला का आरोप था कि उसके साथ हरियाणा स्थित ससुराल में दुष्कर्म हुआ था, जबकि सत्र अदालत के आदेश में इस घटना का कोई उल्लेख नहीं किया गया था, जिससे न्याय में बाधा आई।

हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय का विवादित आदेश किया रद्द

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले से जुड़े विवादित आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि दुष्कर्म और क्रूरता के आरोप सीआरपीसी की धारा 220 की शर्तों के अंतर्गत आते हैं। ऐसे मामलों में संबंधित आरोपियों पर सभी अपराधों के लिए एक ही मुकदमे में आरोप तय कर सुनवाई की जा सकती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को भी यह छूट दी कि वह उचित अदालत में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाए।

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