नई दिल्ली। दिल्ली के एक वकील ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर 1989-90 के दौरान कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याओं में एक विशेष जांच दल (SIT) द्वारा फिर से खोलने और पुन: जांच करने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत जिंदल ने अपने पत्र में कहा कि लक्षित हत्याओं में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई. वकील ने अपने पत्र में कहा कि हत्याकांड के बाद लगातार सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को न्याय का आश्वासन दिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उन्होंने आगे कहा कि 215 प्राथमिकी दर्ज की गई थीं और मामलों की जांच जम्मू-कश्मीर पुलिस ने की थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
यासीन मलिक कश्मीरी पंडितों की हत्या में मुख्य रूप से था शामिल
वकील विनीत जिंदल ने आगे कहा कि इसलिए यह निश्चित रूप से एक संदेह पैदा करता है कि इन प्राथमिकी के लिए किस तरह की जांच की गई थी और केंद्र सरकार भी पीड़ितों के परिवारों को न्याय सुनिश्चित करने और ‘यासीन मलिक जैसे आतंकवादियों’ को दंडित करने के लिए कोई उपाय करने में विफल रही, जो नरसंहार के सक्रिय भागीदारों में उनमें से एक था.” पत्र में आगे कहा गया कि यासीन मलिक जैसे कई अन्य लोग भी हैं, जो इस हत्याकांड में सक्रिय रूप से शामिल थे और माना जाता है कि वे सलाखों के पीछे हैं, लेकिन पुलिस अधिकारियों के अज्ञानी रवैये और पिछली सरकारों के उदार रवैये के कारण पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं मिला है. इसने यह भी तर्क दिया कि नरसंहार के मामलों में दर्ज प्राथमिकी से संबंधित जांच का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला, लेकिन विभिन्न रिपोर्टों में पीड़ितों के डेटा में हेराफेरी देखी जा सकती है.
नरसंहार में मारे गए कश्मीरी पंडितों की संख्या को लेकर विरोधाभास
विभिन्न स्रोतों की रिपोर्टों के अनुसार नरसंहार में मारे गए कश्मीरी पंडितों की संख्या के बारे में विरोधाभास रहे हैं, जो आंकड़ों में भारी भिन्नता को प्रकट करते हैं. घटना की भयावहता का वर्णन करते हुए जिंदल ने अपने पत्र में कहा कि यह एक भयानक घटना थी, जब कश्मीरी पंडितों का जीवन हत्या, सामूहिक बलात्कार, ग्रेनेड विस्फोट, मुठभेड़, गिरफ्तारी, गायब होने के साथ सबसे बुरे सपने में से एक में बदल गया, जिसने पीड़ितों को छोड़ दिया. पूरी तरह से सदमे और अपार आघात में उन्हें हर मायने में कमजोर बना दिया. इस मामले में न्याय देने में 30 साल की देरी पर प्रकाश डालते हुए पत्र में कहा गया है कि ऐसी बिखरती स्थिति में जांच और दोषियों को दंडित करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ प्रशासन पर भी है.
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