नई दिल्ली . दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. तीन प्रावधान जो अध्यादेश का हिस्सा थे, उन्हें विधेयक से हटा दिया गया है. तीन में से दो बदलाव महत्वपूर्ण हैं. इनमें एक दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति देना है और दूसरे बोर्डों एवं प्राधिकरणों की नियुक्त अब केंद्र को सिफारिश भेजकर नहीं, बल्कि सिविल सेवा प्राधिकरण के जरिए की जाएगी.
धारा 3ए को हटाना विधेयक अध्यादेश में उस प्रावधान को हटाता है जो पहले दिल्ली विधानसभा को राज्य लोक सेवाओं और राज्य लोक सेवा आयोग से संबंधित कानून बनाने से रोकता था. अध्यादेश के जरिए जोड़ी गई धारा 3ए में कहा गया था कि दिल्ली विधानसभा के पास सेवाओं से संबंधित कानून बनाने की शक्ति नहीं होगी. इसे अब बिल से बाहर कर दिया गया है. इसके बजाय, बिल अब अनुच्छेद 239 ए पर केंद्रित है, जो केंद्र को राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) स्थापित करने का अधिकार देता है.
वार्षिक रिपोर्ट की जरूरत खत्म पहले, एनसीसीएसए को अपनी गतिविधियों की वार्षिक रिपोर्ट संसद और दिल्ली विधानसभा दोनों को प्रस्तुत करने का प्रावधान था. विधेयक इस दायित्व को समाप्त कर देता है, जिसका अर्थ है कि रिपोर्ट अब इन विधायी निकायों के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है.
नियुक्ति प्रक्रिया में परिवर्तन विधेयक धारा 45 डी के प्रावधानों को कमजोर करता है, जो दिल्ली में विभिन्न प्राधिकरणों, बोर्डों, आयोगों और वैधानिक निकायों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित है. यह उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से पहले केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों के संबंध में मंत्रियों के आदेश/निर्देश की आवश्यकता की जरूरत को समाप्त करता है. इसमें दिल्ली एलजी की नियुक्ति की शक्ति के संबंध में विधेयक में एक नया प्रावधान पेश किया गया है जिसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल अब एनसीसीएसए द्वारा अनुशंसित नामों की सूची के आधार पर दिल्ली सरकार द्वारा गठित बोर्डों और आयोगों में नियुक्तियां करेंगे. इस सूची में दिल्ली के मुख्यमंत्री की सिफारिशें शामिल होंगी.
विधेयक बनने में से नियम हटाए गए – अध्यादेश के माध्यम से धारा 3ए के रूप में जोड़े गए “दिल्ली विधानसभा के संबंध में अतिरिक्त प्रविधान” को विधेयक में हटा दिया गया है. अध्यादेश की धारा 3ए में कहा गया था कि किसी न्यायालय के किसी भी फैसले, आदेश में कुछ भी शामिल होने के बाद भी विधानसभा को सूची-II की प्रविष्टि 41 में उल्लिखित किसी भी मामले को छोड़कर अनुच्छेद 239AA के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी.
विधेयक में आर्टिकल 239 एए पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथारिटी (एनसीसीएसए) बनाने का अधिकार देता है.
राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की “वार्षिक रिपोर्ट” को संसद और दिल्ली विधानसभा में पेश करने को अनिवार्य बनाने वाला प्रविधान.
केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों से संबंधित मंत्रियों के आदेशों, निर्देशों को उपराज्यपाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखना अनिवार्य करने वाला प्रविधान.
विधेयक में ये जोड़ा गया
दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए कियी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा. यानी विधेयक में एक नए प्रविधान में कहा गया है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार द्वारा गठित बोर्डों और आयोगों में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण द्वारा अनुशंसित नामों के एक पैनल के आधार पर नियुक्तियां करेंगे, जिसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे. मगर इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं. यानी वह इस प्राधिकरण में अपने अनुसार कुछ भी नहीं करा सकते हैं.
विधेयक के तहत अन्य सख्त नियम
-अब मुख्य सचिव ये तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत.
-इसी तरह अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है.
-सतर्कता सचिव अध्यादेश के आने के बाद चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं वे एलजी के प्रति बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हैं.
-अब अगर मुख्यसचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेंगे. इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं.
-विधेयक के पास होने के बाद दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल खत्म हो जाएगा, ये शक्तियां एलजी के जरिए केंद्र के पास चली जाएंगी.
-एनसीसीएसए की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं. अगर एनसीसीएसए और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा.