दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े UAPA मामले में आरोपी शरजील ईमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा सहित कई आरोपियों की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। गुल्फिशा फातिमा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखते हुए कहा कि “आरोपियों को जेल में 5 साल 5 महीने हो चुके हैं। जांच एजेंसियों ने कई पूरक चार्जशीट दायर कर दी हैं, लेकिन मुकदमा अपने अंतिम चरण तक नहीं पहुंचा है। ऐसे में लगातार हिरासत में रखना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।” मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजिरिया की बेंच कर रही है। बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि मामले में विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। इसलिए कोर्ट ने जमानत याचिकाओं पर सुनवाई को 3 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
सुनवाई के दौरान गुल्फीशा फातिमा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि गुल्फीशा अप्रैल 2020 से अब तक 5 साल 5 महीने से जेल में हैं। उन्होंने बताया कि मुख्य चार्जशीट 16 सितंबर 2020 को दाखिल की गई, लेकिन इसके बाद से हर साल एक नई पूरक चार्जशीट दाखिल की जा रही है, जिसे उन्होंने “वार्षिक अनुष्ठान” करार दिया। सिंघवी ने तर्क दिया कि इतनी लंबी न्यायिक हिरासत और लगातार पूरक चार्जशीट दाखिल करने के बावजूद मुकदमे की सुनवाई गति नहीं पकड़ पा रही है।
इस दौरान उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दावा किया कि दंगों के समय उमर दिल्ली में मौजूद ही नहीं थे। उन्होंने कहा कि आरोप परिस्थितिजन्य हैं और अभियोजन पक्ष के पास उनके खिलाफ सीधा प्रमाण नहीं है।
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने आगे दलील दी कि यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या लगातार पूरक आरोपपत्र दायर करके जांच को अनिश्चितकाल तक लंबा खींचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले स्पष्ट करते हैं कि समान परिस्थितियों में आरोपी को समानता के आधार पर जमानत मिलनी चाहिए, और गुल्फीशा इस अधिकार की हकदार हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि गुल्फीशा एक महिला हैं, और कानून में महिलाओं के लिए और अधिक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण का प्रावधान है। सिंघवी ने अदालत से कहा कि इस मामले पर विचार करने में पहले ही काफी देरी हो चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं, जबकि मुकदमे में अक्टूबर 2024 तक 939 गवाहों को सूचीबद्ध किया गया है। उन्होंने कहा, “यहां आरोपों की सच्चाई या गुण-दोष पर बात नहीं है, बल्कि इस बात पर है कि कोई व्यक्ति इतने लंबे समय तक बिना ट्रायल आगे बढ़े जेल में कैसे रह सकता है।”
दिल्ली पुलिस ने दाखिल किया था हलफनामा
दिल्ली पुलिस की ओर से दाखिल हलफनामे में दावा किया गया है कि वर्ष 2020 में हुए दिल्ली दंगे कोई आकस्मिक घटना नहीं थे, बल्कि यह सोची-समझी साजिश का हिस्सा थे। पुलिस ने कहा है कि दंगों का उद्देश्य केंद्र सरकार को अस्थिर करना और देश को कमजोर करना था। हलफनामे में कहा गया कि यह हिंसा सत्ता परिवर्तन की रणनीति के तहत रची गई और इसे अंजाम देने के लिए देशभर में अशांति फैलाने की कोशिश की गई।
दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही इस मामले में सभी आरोपियों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर चुकी है। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग हिंसा के लिए ढाल की तरह नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि “नागरिकों को विरोध और प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन इनकी आड़ में षड्यंत्र करके हिंसा भड़काने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
दंगों के समय उमर दिल्ली में नहीं था- कपिल सिब्बल
शरजील इमाम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष को जांच पूरी करने में ही तीन साल लग गए, जिसकी वजह से सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी। उन्होंने कहा कि “5 साल में से 3 साल तो सिर्फ इस आधार पर निकल गए कि जांच अभी जारी है।” दवे ने दलील दी कि लगातार पूरक चार्जशीट दाखिल होने से मुकदमे की प्रक्रिया धीमी हो गई है।
उधर, उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में 751 एफआईआर दर्ज की गई हैं, लेकिन उमर को सिर्फ एक केस में आरोपी बनाया गया है। सिब्बल ने दावा किया कि “दंगों के समय उमर दिल्ली में मौजूद ही नहीं था। अगर व्यक्ति मौके पर नहीं था, तो उसे हिंसा से कैसे जोड़ा जा सकता है?”
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