प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की डिग्री सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई हुई. इस दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि हम रिकॉर्ड कोर्ट को दिखा सकते हैं, लेकिन केवल प्रचार या राजनीतिक मकसद से PM की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग करने वालों को सामने उजागर नहीं करेंगे. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने वाली याचिका पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस सचिन दत्ता ने दोनों पक्षों के तर्क सुने लिए गए हैं और फैसला सुरक्षित रख लिया गया है.

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हाईकोर्ट में दिल्ली विश्वविद्यालय की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि हम रिकॉर्ड कोर्ट को दिखा सकते हैं, लेकिन उन लोगों के सामने उजागर नहीं करेंगे जो केवल प्रचार या राजनीतिक मकसद से पीएम की डिग्री को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं.

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सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय को हाईकोर्ट को पीएम की डिग्री और संबंधित रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है. प्रधानमंत्री ने साल 1978 में बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री की है. वहीं केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि अगर आरटीआई के नियम को याचिकाकर्ता की मांग के अनुसार, लागू किया गया तो सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा. अब इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है.

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दिल्ली विश्वविधालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने कहा कि डीयू को अदालत को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है.

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आपको बता दें कि आरटीआई आवेदन के बाद नीरज नामक व्यक्ति द्वारा केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 21 दिसंबर, 2016 को 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी. इस वर्ष पीएम मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने 23 जनवरी 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी.

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दिल्ली विश्वविधालय ने 11 फरवरी को तर्क दिया कि उसके पास सूचना एक जिम्मेदारी की क्षमता में है और जनहित के अभाव में केवल जिज्ञासा के कारण किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है. डीयू ने कहा कि आरटीआई अधिनियम को मजाक बना दिया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री समेत 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड मांगे गए हैं

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