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ज्यादातर लोगों का मानना है कि सेक्शन 498ए दहेज की मांग पर लागू होता है. जिसमें महिला के पति और परिवार वाले दहेज की मांग करने से बच सकते हैं. अगर दहेज की मांग नहीं की गई है. देश के सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्थिति को स्पष्ट किया है, कि सेक्शन 498ए का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा और अत्याचार से बचाना है. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि आम धारणा रही है कि कानून सिर्फ दहेज उत्पीड़न से महिलाओं को बचाने के लिए बनाया गया है. इसलिए सेक्शन 498A के तहत ऐक्शन लगाया जा सकता है अगर किसी महिला का पति या ससुराल वाले दहेज मांगते और उसे प्रताड़ित करते हैं. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि आम तौर पर यह कानून दहेज उत्पीड़न के मामलों से महिलाओं को बचाने के लिए बनाया गया है.
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एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वाराले ने कहा कि सेक्शन 498ए का मुख्य उद्देश्य क्रूरता से बचाना है और यह सिर्फ दहेज उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए नहीं है. बेंच ने कहा कि अगर ससुराल वाले दहेज की मांग नहीं कर रहे हैं, तो महिला के खिलाफ ऐक्शन लगाया जा सकता है. 12 दिसंबर 2014 को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इस सेक्शन के तहत क्रूरता की परिभाषा तय करने के लिए दहेज की मांग करना ही जरूरी नहीं है.” उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश को ही खारिज कर दिया है. उच्च न्यायालय ने A.T. राव के खिलाफ 498ए के तहत ऐक्शन को खारिज कर दिया था, जो अब उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है.
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IPC धारा 498A क्या है
IPC की धारा 498A के अनुसार, यदि किसी महिला का पति या उसके पति का कोई भी रिश्तेदार उस महिला के साथ क्रूरता (मारपीट, परेशान करना) करता हैया उसे मानसिक या किसी भी अन्य प्रकार से परेशान करता है IPC 498a के तहत उस व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जाती है.
इस धारा का उद्देश्य किसी ऐसी स्त्री की रक्षा करना है जिसको उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है. यदि कोई अपनी पत्नी को मारपीट करता है, तो वह अपनी पत्नी के साथ क्रूरता करने के अपराध का दोषी होगा, जिसके खिलाफ इस धारा के तहत कार्रवाई की जाएगी.
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