जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में पृथक बस्तर राज्य की मांग उठने लगी है. यह मांग नक्सलियों की नहीं बल्कि आदिवासी नेताओं की है. दरअसल संभाग में आदिवासियों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर सर्व आदिवासी समाज पिछले कुछ समय से लगातार आंदोलन कर रहा है. आदिवासी नेताओं ने सरकार को चेताया है कि यदि आदिवासियों का शोषण बंद नहीं हुआ और आने वाले 6 महीने में सरकार उनकी मांगों को पूरी नहीं करती तो वे आर्थिक नाकेबंदी के साथ ही पृथक बस्तर राज्य के लिए आंदोलन शुरु करेंगे. आदिवासी नेताओं ने यह चेतावनी प्रशासन के साथ हुई बैठक के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए दी.

20 सितंबर को संभाग में चक्काजाम और प्रदर्शन किए जाने की घोषणा के बाद मंगलवार को संभागायुक्त कार्यालय में प्रशासन ने सर्व आदिवासी समाज की ली. लगभग 4 घंटे चली मैराथन बैठक में आदिवासी नेताओं ने पालनार आश्रम में आदिवासी छात्राओं के साथ सुरक्षा बलों द्वारा की गई छेड़छाड़, आदिवासियों के साथ अत्याचार, पखांजूर क्षेत्र में बांग्लादेशी  शरणार्थियों की एकाएक बड़ी संख्या की जांच करने और उन्हें बस्तर से बाहर निकालने, नगरनार स्टील प्लांट का निजिकरण का मामला उठाया.

उन्होंने पालनार आश्रम में छात्राओं से छेड़छाड़ के मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की. इसके अलावा बस्तर में पांचवी अनुसूची और वन अधिकार कानू लागू करने की भी मांग की. इन सभी मुद्दों को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने आंदोलन की घोषणा की थी. जिसके बाद संभागायुक्त दिलीप वासनीकर, आईजी विवेकानंद सिन्हा ने बैठक ली. बैठक में बस्तर, कांकेर, दंतेवाड़ा के एसपी व कलेक्टर मौजूद थे. समाज के पदाधिकारियों ने प्रशासन पर संवेदनहीनता के भी आरोप लगाए.

अरविन्द नेताम और सोहन पोटाई ने मीडिया से बातचीत की अरविंद नेताम ने कहा कि शासन और प्रशासन आदिवासियों से जुड़े संवैधानिक अधिकारों को बस्तर में लागू करने में पूरी तरीके से विफल रहे वहीं उन्होंने आदिवासी समाज के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक को संवादहीनता के खात्मे की दिशा में सराहनीय पहल बताया.

वहीं 4 बार के भाजपा सांसद रहे सोहन पोटाई ने कहा कि शासन प्रशासन को दो टूक चेतावनी देते हुए कहा कि 6 माह में उनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो पृथक बस्तर राज्य ही एकमात्र विकल्प बचेगा.