पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। कई ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हैं, जिन्हें आज की पीढ़ी नहीं जानती, क्योंकि उनके नाम से स्कूल तक नहीं है. इन्हीं में से एक हैं, खेदू प्रसाद उर्फ त्रिवेणी शंकर शर्मा. गरियाबंद जिले के कुरुसकेरा गांव में जन्मे शर्मा 2007 में 87 की उम्र में निधन हो गया. उनकी दो बेटियां थीं, जिनमें से एक ही जीवित है.

अंबिका दुबे भिलाई में रहती हैं. वे बीएसपी से रिटायर्ड हैं. उन्होंने बताया कि मैं पिछली सरकार से लेकर अब तक गुहार लगा रही हूं कि पिताजी के नाम से गांव के स्कूल का नामकरण कर दें, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया.

पिताजी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 महीने जेल में रहे. इसमें से तीन महीने उन्हें कालकोठरी में रखा गया था. राजिम के स्वतंत्रता सेनानी 9 महीने जेल में रहे. आज एक स्कूल भी इनके नाम पर नहीं है.

राजिम के स्वतंत्रता सेनानी 9 महीने जेल में रहे. एक स्कूल भी इनके नाम पर नहीं है. सरकारी नौकरी छोड़ आंदोलन में कूद पड़े थे. अंबिका ने बताया कि पिताजी सरकारी स्कूल में टीचर थे. गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी. आजादी के आंदोलन में कूद गए.

स्वतंत्रता आंदोलन में उस वक्त सुंदरलाल शर्मा, केयूर भूषण, रणवीर शास्त्री, वासदुेव चंद्राकर, मोतीलाल वोरा उनके साथी बने. बापू से प्रेरित होकर राजिम की हरिजन बस्ती में मल साफ करने का आंदोलन भी चलाया था. 1942 में उनकी गिरफ्तारी गरियाबंद के कोचबाय से हुई थी.

श्यामाचरण के खिलाफ चुनाव लड़ा, हमेशा हारे
उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा. वे दिग्गज राजनेता श्यामचरण के खिलाफ चुनाव लड़ा करते थे. हालांकि कभी जीते नहीं. उनका कहना था कि मैं जिस गांव का रहने वाला हूं, उसी विधानसभा सीट से लड़ता रहूंगा.

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