आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI), यानी ऐसी एआई जो इंसानों जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं से युक्त हो, अगले पांच से दस वर्षों में वास्तविकता बन सकती है. यह दावा किया है Google DeepMind के सीईओ और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डेमिस हासबिस ने.
हालांकि, हासबिस का यह भी कहना है कि मौजूदा एआई तकनीकों में अब भी कल्पनाशक्ति की भारी कमी है और ये सिस्टम अभी तक चेतना (Consciousness) के स्तर पर नहीं पहुंचे हैं.
“आज की एआई तकनीकें मूलतः उपलब्ध मानवीय ज्ञान का औसत रूप हैं. ये अभी भी कोई पूरी तरह नया सवाल पूछने या नई परिकल्पना (Hypothesis) गढ़ने में सक्षम नहीं हैं,” हासबिस ने CBS News के प्रसिद्ध कार्यक्रम 60 Minutes को दिए एक इंटरव्यू में कहा.
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“पहले बनाएं बुद्धिमान टूल्स, फिर सोचें सेल्फ-अवेयर AI पर”
हासबिस का मानना है कि सेल्फ-अवेयर यानी खुद को समझ सकने वाली एआई की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले हमें तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) को बेहतर तरीके से समझने की आवश्यकता है.
“पहले हमें ऐसे बुद्धिमान टूल्स बनाने चाहिए जो इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें,” उन्होंने कहा.
दवा निर्माण में ला सकता है क्रांति: हफ्तों में हो सकता है वर्षों का काम
AI का सबसे व्यावहारिक उपयोग फिलहाल दवा और हेल्थकेयर सेक्टर में देखने को मिल रहा है. हासबिस ने बताया कि जहां पहले एक दवा तैयार करने में औसतन 10 साल और अरबों डॉलर लगते थे, वहीं अब AI की मदद से यह काम हफ्तों या महीनों में पूरा किया जा सकता है.
रोबोटिक्स है भविष्य, जल्द दिखेगा बड़ा ब्रेकथ्रू
भविष्य को लेकर हासबिस ने कहा: “मुझे लगता है कि अगले कुछ वर्षों में हम ऐसे रोबोट्स देखेंगे जो मानव जैसे कार्य करने में सक्षम होंगे. विशेष रूप से ह्यूमनॉइड रोबोट्स के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां सामने आ सकती हैं.”
AI एक ब्लैक बॉक्स जैसा – जरूरी हैं गार्डरेल्स और गाइडेंस
AI कैसे और क्या सीखती है, इस पर हासबिस ने कहा: “हम कोडिंग के जरिए उसमें सब कुछ नहीं डालते. वह इंसान की तरह डेटा से सीखती है, इसलिए कई बार उसमें नई क्षमताएं स्वतः ही उभरकर सामने आती हैं.”
उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे सिस्टम्स को इंसानों की तरह मूल्य आधारित शिक्षा देना जरूरी है.
“जिस तरह हम बच्चों को नैतिकता सिखाते हैं, वैसे ही AI सिस्टम्स को भी एक मजबूत मूल्य प्रणाली (Value System) और सुरक्षा सीमाएं (Guardrails) देना बेहद ज़रूरी है.”
AI में हो रही है तेज़ प्रगति
हासबिस ने माना कि AI का विकास एक एक्सपोनेंशियल कर्व (Exponential Curve) पर है.
“जैसे-जैसे इस क्षेत्र में सफलता मिल रही है, वैसे-वैसे इसमें अधिक संसाधन, टैलेंट और निवेश भी आ रहे हैं, जिससे इसकी ग्रोथ और तेज़ हो रही है.”
AlphaFold से नोबेल तक का सफर
हासबिस ने AI रिसर्चर जॉन जंपर के साथ मिलकर AlphaFold नामक तकनीक विकसित की, जो प्रोटीन की 3D संरचना की सटीक भविष्यवाणी करती है. इस क्रांतिकारी कार्य के लिए उन्हें 2024 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला. उसी वर्ष ब्रिटेन के राजा चार्ल्स ने उन्हें नाइटहुड की उपाधि से भी सम्मानित किया.
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