पुरुषोत्तम पात्रा. गरियाबंद. कहते हैं जिनका कोई नहीं होता उनका भगवान होता है, मासूम भूमिका को भले ही उसके अपनों का तिरस्कार कर दिया हो, मगर आज उसके अपनाने के लिए पूरा झोलाराव गांव तैयार है, मदद करने के लिए प्रशासन भी खड़ा है, भूमिका की मदद करके प्रशासन ने तो अपना कर्तव्य निभाया ही है झोलाराव के ग्रामीणों ने भी उसकी अपनों बच्चों की तरह परवरिश करके मानवता को गौरवान्वित करने का काम किया है.

गरियाबंद के सुदूर जंगल में बसा झोलाराव गांव इन दिनों चर्चा में है. दरअसल 10 दिन पहले कोई रात के अंधेरे में एक दुधमंही बच्ची को जैनीबाई के घर के आंगन में लावारिस छोड़कर चला गया. रोने की आवाज सुनकर घर से बाहर निकली जैनीबाई ने  बच्ची को देख आस-पास में उसके परिजनों की तलाश की, लेकिन कोई नहीं मिला. जब कोई नहीं मिला तो बच्ची को घर के अंदर ले आई.

गांव वालों ने लिया पालन-पोषण का निर्णय

सुबह बच्ची मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. इसके बाद गांव के सभी लोगों ने बच्ची को पालने का निर्णय लिया और इसकी जिम्मेदारी गणेशी बाई को दी गई. आसपास के लोग भी बच्ची को देखने के लिए पहुंचने लगे और पालन-पोषण के लिए मदद भी किए. बच्ची जमीन से मिली तो ग्रामीणों ने उसका नाम भूमिका रख दिया. दुधमुंही भूमिका को लावारिस छोड़कर जहां उसके परिजनों ने मानवता को शर्मसार किया, वहीं बच्ची को अपनाकर छोलाराव के ग्रामीणों ने मानवता को गौरवान्वित करने का काम किया.

अधिकारी बच्ची को रायपुर ले आए

गणेशी बाई भूमिका को अपनाना चाहती थी, वह उसकी परिवरिश भी अपनी सगी बेटी की तरह कर रही थी, मगर मितानिन होने के कारण गणेशी बाई की बहू ने इसकी जानकारी अपने अधिकारियों को दी, बच्ची मिलने की खबर सुनकर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी गांव पहुंच गए, और बच्ची को अपने साथ ले आए. फिलहाल बच्ची को रायपुर के मातृछाया संस्था को सौंप दिया गया है, विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बच्ची ठीक है, और फिलहाल बच्ची का पालन-पोषण मातृछाया में ही होगा.