देवउठनी एकादशी का पर्व इस बार 1 नवंबर, शनिवार को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और चार महीने तक बंद रहे सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. आषाढ़ शुक्ल एकादशी को जब भगवान शयन करते हैं, तब से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक विवाह, गृहप्रवेश और अन्य शुभ कार्य वर्जित रहते हैं. इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है.

तुलसी विवाह और परंपरा
देवउठनी एकादशी को तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है. इसे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है. इस विवाह के साथ ही घर-घर में मंगल ध्वनि गूंजने लगती है और मांगलिक अवसरों की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और कार्यों में सफलता मिलती है.
विवाह मुहूर्त होंगे शुरू
1 नवंबर के बाद विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश और मुंडन संस्कार जैसे बड़े कार्यों की अनुमति फिर से मिल जाएगी. खासकर उत्तर भारत में शादियों का सीजन देवउठनी के बाद ही धूमधाम से आरंभ होता है. पंडितों के अनुसार, इस वर्ष नवंबर में कई शुभ विवाह मुहूर्त उपलब्ध हैं.
नवंबर-दिसंबर के प्रमुख विवाह मुहूर्त
देवउठनी के बाद इस बार 2, 3, 6, 8, 12, 13, 16, 17, 18, 21, 22, 23 और 25 नवंबर को विवाह के लिए शुभ दिन माने जा रहे हैं. वहीं दिसंबर में 4, 5 और 6 तारीख को भी शादी के लिए उत्तम योग बन रहे हैं. इन दिनों में विवाह करने से वैवाहिक जीवन सुखमय और समृद्ध माना जाता है.
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