Devuthani Ekadashi Vrat Katha : कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) कहा जाता है. इस एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. आज के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा के बाद जागकर पूरे सृष्टि का कार्यभार फिर से संभालते हैं. देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन व्रत के साथ-साथ व्रत कथा का भी पाठ करना चाहिए. आज हम इस आर्टिकल में आपको इस एकादशी व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं.

देवउठनी एकादशी व्रत की कथा (Devuthani Ekadashi Vrat Katha)

एक समय की बात है एक राज्य में राजा के आदेश पर सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे. राज्य की प्रजा से लेकर नौकर-चाकरों तक, किसी को भी एकादशी के दिन अन्न खाने की अनुमति नहीं थी. एक बार दूसरे राज्य से एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में आया था. राजा ने उसे नौकरी तो दे दी, लेकिन यह शर्त रखी कि एकादशी के दिन उसे अन्न नहीं दिया जाएगा, केवल फलाहार ही करना होगा. नौकरी मिलने की खुशी में उस व्यक्ति ने शर्त मान ली. लेकिन जब एकादशी का दिन आया और उसे केवल फल दिए गए, तो वह व्यक्ति भूखा रहने के कारण राजा के पास जाकर गिड़गिड़ाने लगा कि ‘महाराज! फलाहार से मेरा पेट नहीं भरता, मैं भूखा ही मर जाऊंगा, कृपया मुझे अन्न दे दीजिए.’ राजा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना.

जिसके बाद राजा ने उसे दो बोरी अनाज देकर कहा, ‘जाओ, महल से दूर जाकर अपनी इच्छा पूरी कर लो.’ वह व्यक्ति नदी के किनारे गया और भोजन पकाया.भोजन तैयार होने पर उसने भगवान को भोजन ग्रहण करने के लिए पुकारा. तभी पीताम्बर धारण किए भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में वहां प्रकट हुए और प्रेम से उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे. भोजन के बाद, भगवान विष्णु उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम विष्णुलोक ले गए. यह देखकर राजा को ज्ञान हुआ कि व्रत-उपवास तब तक फल नहीं देते, जब तक मन पवित्र न हो.

उस व्यक्ति ने भले ही नियम तोड़ा, लेकिन उसका हृदय पवित्र था और उसने भगवान को सच्चे मन से पुकारा था. ऐसा माना जाता है कि जो भक्त देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) के दिन श्रद्धापूर्वक इस कथा का पाठ करते हैं, उनके सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है.