सुधीर दंडोतिया, भोपाल। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के देवास /शाजापुर लोकसभा में कुल 8 उम्मीदवार और एक नोटा है। यहां भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है।
मुद्दे- रोजगार एक प्रमुख मुद्दा, नए और उद्योग के लिए अपेक्षित, मेडिकल कॉलेज की लंबे समय से मांगों के साथ हायर एजुकेशन को लेकर कॉलेज का ना होना प्रमुख मुद्दा। रोड़ बिजली पानी जेसे बेसिक मूल भूत सुविधाओ जेसे विषय के मुद्दो अहम चुनावी एजेंडे में सामिल ना होकर राष्ट्र निर्माण में विकसित भारत के मुद्दो पर वोटर को लुभाया जा रहा है। धार्मिक मुद्दे के आधार पर भाजपा राम नाम के साथ जमीनी धार्मिक पैठ बना रही है जिसमें ओबीसी एसटी-एससी वर्ग को फोकस किया जा रहा है, क्योंकि इस वर्ग के वोटर कांग्रेस को समर्पित होते थे, इसीलिए इस बार भाजपा इस वर्ग को साधने के प्रयास में जुटी है। महिलाओं को समर्पित योजनाओं का प्रचार प्रसार और उनको आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा खुलकर महिलाओं के पक्ष में अपने सफल कार्यकाल का बखान कर रही है वहीं कांग्रेस सरकार बनने पर महिलाओं हितैषी योजनाओं पर काम करने के लिए आश्वासन देते नजर आ रही है।
समीकरण के साथ देवास/शाजापुर लोकसभा सीट की डिटेल
जब देवास उज्जैन संसदीय सीट का हिस्सा था, तब उज्जैन के हुकुमचंद कछवाय सांसद रहे। जब यह इंदौर लोकसभा सीट में आता था तो इंदौर के प्रकाश चंद्र सेठी सांसद रहे। उनके कार्यकाल में देवास को बैंक नोट प्रेस सहित अन्य कई उपक्रम मिले थे।इसके बाद सांसद बने फूलचंद वर्मा, थावरचंद गेहलोत और मनोहर ऊंटवाल भी देवास से नहीं थे। वर्तमान सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी देवास विधानसभा क्षेत्र के निवासी जरूर हैं, लेकिन वे भी इंदौर और बाहर ही रहे। अपवाद बापूलाल मालवीय थे। वे देवास के ही थे और सांसद भी चुने गए। देवास संसदीय सीट से मुंबई के बाबूराव पटेल और जगन्नाथ जोशी भी सांसद रहे। दोनों ही जनसंघ से जुड़े हुए थे।
देवास और शाजापुर संघ का गढ़
स्वतंत्रता के बाद देवास संसदीय सीट पर शुरू में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन वर्ष 1962 के बाद से ही इस सीट की तासीर बदलती गई। जनसंघ की विचारधारा मतदाताओं के दिलों में घर कर गई। ग्वालियर रियासत का हिस्सा होने की वजह से राजमाता विजयाराजे सिंधिया का प्रभाव भी यहां रहा। उनके समय में देवास और शाजापुर संघ का गढ़ हुआ करते था।पहले ग्वालियर रियासत में आने वाली सुसनेर विधानसभा इस सीट में शामिल थी। वर्ष 1962 के बाद केवल वर्ष 1984 में बापूलाल मालवीय व वर्ष 2009 में सज्जन सिंह वर्मा ही कांग्रेस से जीत पाए।
1967 से यह शाजापुर-देवास संसदीय सीट रही
वर्ष 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए। तब मध्य भारत के नाम से ही इस क्षेत्र की पहचान थी। पहले चुनाव में लोकसभा सीट को शाजापुर-राजगढ़ संसदीय क्षेत्र नाम दिया गया। शुजालपुर निवासी लीलाधर जोशी और शाजापुर के भागीरथ मालवीय सांसद चुने गए।वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश का गठन होने के बाद 1957 में लोकसभा चुनाव हुए। 1967 से यह शाजापुर-देवास संसदीय सीट रही, जिसमें देवास का आधा हिस्सा जोड़ दिया गया। वर्तमान देवास सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है।
स्टेट के मुखिया को प्रधानमंत्री के तौर पर ही जाना जाता
मध्य भारत के पहले प्रधानमंत्री भी यहीं से चुने गए। शुरू में कांग्रेस ने इस क्षेत्र को जीतने के लिए कई तरह के प्रयोग किए, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। शुजालपुर के रहने वाले लीलाधर जोशी को मध्य भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। दरअसल, उस समय मुख्यमंत्री पदनाम चलन में नहीं था। किसी भी स्टेट के मुखिया को प्रधानमंत्री के तौर पर ही जाना जाता था। बनते-बिगड़ते रहे राजनीतिक रिश्ते। वर्ष 1990 के बाद देवास की राजनीति में यहां के पूर्व राजपरिवार का दखल बढ़ा। राजपरिवार के सदस्य पूर्व मंत्री स्वर्गीय तुकोजीराव पवार का राजनीति में पदार्पण भी इसी दौरान हुआ था। वर्ष 1991 में भाजपा के फूलचंद वर्मा चौथी बार सांसद तो बने, लेकिन तुकोजीराव पवार से उनके राजनीतिक रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे।
सज्जन सिंह ने थावरचंद गेहलोत को हरा दिया
तुकोजीराव के भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे से पारिवारिक संबंध थे। वर्ष 1996 में तुकोजीराव पवार के आग्रह पर थावरचंद गेहलोत को देवास संसदीय सीट से टिकट दिया गया। थावरचंद गेहलोत चुनाव जीत गए। वे 2009 तक सांसद रहे। थावरचंद गेहलोत को हराने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा को लोकसभा चुनाव लड़ाया। दांव कारगर रहा और सज्जन सिंह ने थावरचंद गेहलोत को हरा दिया।
जीत का सबसे कम अंतर 1957 में 1.2 प्रतिशत रहा
देवास में नजदीकी मुकाबला भी कम रहता है देवास लोकसभा सीट पर जीतने और हारने वाले प्रत्याशियों के बीच मुकाबला कभी भी नजदीकी नहीं रहा। यहां जीत का अंतर बड़ा ही होता है। वोट प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो जीत का सबसे कम अंतर 1957 में 1.2 प्रतिशत रहा। इसके बाद जीत का अंतर हमेशा ज्यादा ही रहा। वर्ष 2014 के चुनाव में तो जीत का अंतर 24.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसी तरह वर्ष 2019 में भाजपा के महेंद्र सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद सिंह टिपानिया को 3.7 लाख से अधिक वोटों से हराया।
अन्य कोई राजनीतिक दल अब तक अपनी जगह नहीं बना पाया
वर्तमान 2024 लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने एक बार फिर जज रह चुके वर्तमान सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी को एक बार फिर मौका दिया है वहीं कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राधा कृष्ण मालवीय के पुत्र राजेंद्र मालवीय को मैदान में उतारा है। यहां अन्य कोई राजनीतिक दल अब तक अपनी जगह नहीं बना पाया है ऐसे में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही देखा जाता है। यहां जातिगत समीकरणों के आधार पर एसटी आरक्षित सीट पर भलाई समाज का बड़ा वोट बैंक है। कही न कही उसी के चलते वर्तमान में कांग्रेस और भाजपा ने दोनों ने ही इसी समाज से प्रत्याशियों को मौका दिया।
उम्मीदवार
महेंद्र सिंह सोलंकी (भाजपा)
राजेंद्र मालवीय (कांग्रेस)
कुल वोटर – लगभग 19 लाख
4 जिले देवास, सीहोर, आगर मालवा, शाजापुर शामिल
इस लोकसभा में 8 विधानसभा आष्टा, आगर मालवा, शाजापुर, शुजालपुर, कालापीपल, सोनकच्छ, देवास, हाटपिपल्या शामिल है। 2023 के चुनाव के हिसाब से इस संसदीय सीट की विधानसभा में सभी पर भाजपा का कब्जा।
आष्टा (एससी) – गोपाल सिंह (भाजपा)
आगर (एससी)- माधव सिंह गहलोत (भाजपा)
शाजापुर – अरुण भीमावद (भाजपा)
शुजालपुर – इंदर सिंह परमार (भाजपा)
कालापीपल – घनश्याम चद्रवंशी (भाजपा)
सोनकच्छ – राजेश सोनकर (भाजपा)
देवास – गायत्री राजे पवार (भाजपा)
हाटपिपल्या – मनोज चौधरी (भाजपा)
2009, 2014, 2019 में जितने वाले सांसद
2009 – सज्जन सिंह वर्मा, कांग्रेस के उम्मीदवार ने भाजपा के उम्मीदवार थावरचंद गेहलोत को 15457 वोट से हराया
2014 – मनोहर ऊंटवाल, भाजपा के उम्मीदवार ने कांग्रेस के उम्मीदवार सज्जन सिंह वर्मा को 260313 वोट से हराया
2019 – महेंद्र सिंह सोलंकी, भाजपा के उम्मीदवार ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रह्लाद सिंह टिपणिया को 372249 वोट से हराया
यहां का जातिगत समीकरण –
स्वर्ण मतदाता – 30.68 प्रतिशत
अल्पसंख्यक – 17.83 प्रतिशत
अनुसूचित जाति – 18.25 प्रतिशत
अनुसूचित जनजाति – 4.63 प्रतिशत
अन्य पिछड़ा वर्ग – 28.61 प्रतिशत
इस लोकसभा सीट का नाम 2009 के पहले तक शाजापुर था, लेकिन इसे बदलकर देवास-शाजापुर लोकसभा सीट कर दिया गया है. इस बीच परिसीमन भी हुआ, लेकिन मतदाताओं का मिजाज ज्यादा नहीं बदला है।
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