अमित पांडेय, खैरागढ़. जनजातीय समुदायों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने नवंबर 2024 में धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया है, जिससे एक नई उम्मीद जगी है। पीएम जनमन योजना के जैसे इसका भी प्रचार प्रसार जोरदार तरीके से किया जा रहा है। मंगलवार देर शाम को खैरागढ़ कलेक्टर इंद्रजीत चंद्रवाल ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इस योजना की जानकारी दी। इस बीच एक और सच्चाई सामने आ रही है कि पीएम जनमन योजना, जिसे आदिवासी बहुल इलाकों के समग्र विकास के लिए पहले शुरू किया गया था, उसके अंतर्गत चयनित गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं।

धरती आबा अभियान के तहत खैरागढ़ जिले के खैरागढ़ और छुईंखदान इन दो विकासखंडों में 16 गांवों का चयन किया गया है। इनमें खैरागढ़ विकास खंड में गातापार जंगल, लक्षना, भरतपुर, नवागांव कवर, चंगुर्दा, सिवनी और उरईडबरी को शामिल किया गया है. वहीं छुईंखदान विकासखंड के नचनिया, लालपुर, बंजारपुर,गोलरडीह, गेरूखदान, बेलगांव, दरबानटोला, मुंडाटोला और ग्राम सरोधी जैसे वनांचल गांवों को जोड़ा गया है। इन गांवों में आदिवासी समुदायों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने, उन्हें शासकीय योजनाओं की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इस अभियान का उद्देश्य केवल बुनियादी सुविधाएं देना नहीं है, बल्कि समावेशी विकास को बढ़ावा देना है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और मूलभूत संरचनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है।

विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं पीएम जनमन योजना में चयनित गांव

इस बीच एक और सच्चाई सामने आ रही है कि पीएम जनमन योजना, जिसे आदिवासी बहुल इलाकों के समग्र विकास के लिए पहले शुरू किया गया था, उसके अंतर्गत चयनित गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। इन गांवों में न तो सड़कें बनीं, न ही स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हुईं और न ही शिक्षा या रोजगार के स्थायी संसाधन उपलब्ध कराए जा सके। पीएम जनमन योजना के तहत खैरागढ़ जिले में 47 बैगा बसाहटो को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया गया था, लेकिन ये सारा विकास सरकारी विज्ञापनों तक ही सीमित रहा और इन 47 बैगा बसाहटों की स्थिति अब भी ख़राब है.

अब तक 9 गांवों में नहीं पहुंची है बिजली

पानी, सड़क, स्कूल और अस्पताल तो छोड़िए पीएम जनमन योजना में चयनित नौ गांवों में अब तक बिजली भी नहीं पहुंची है। हालांकि वनबाधा और दूरी अधिक होने के चलते बिजली विभाग ने ग्वालगुण्डी, आमाटोला, झिलमिली, सिंगबोरा, निजामडीह, संजारी, कोहकाझोरी,लवातरा और टिंगीपुर गांव में क्रेडा को सोलर ऊर्जा से बिजली उपलब्ध कराने के लिए पत्र लिखा है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई इन बसाहटों के विकास को लेकर नहीं हुई है। आप सोचिए आज़ादी के सात दशक बीतने के बाद भी ये आदिवासी बस्तियां गुलामो वाला जीवन जीने को मजबूर है। ऐसे में धरती आबा अभियान को लेकर भले ही नये वादे किए जा रहे हैं, लेकिन पीएम जनमन जैसी योजनाओं की अधूरी तस्वीर सरकारी दावों पर सवाल खड़े कर रही है।

कटेमा गांव अब भी अंधेरे में, वन विभाग बना रोड़ा

खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले के कटेमा गांव में भी आज तक बिजली नहीं पहुंची है। घने जंगलों में बसे इस गांव के 27 परिवार अंधेरे में जिंदगी गुजार रहे हैं। पहले यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित था, लेकिन आईटीबीपी कैंप के बाद हालात बदले। फिर भी विकास नहीं पहुंच सका। बिजली विभाग खंभे लगाने को तैयार है, पर वन विभाग जंगल कटने का हवाला देकर मंजूरी नहीं दे रहा। नतीजतन, सरकारी योजनाएं आज भी यहां कागज़ों तक सीमित है।

मिशन मोड में लागू किया जा रहा धरती आबा अभियान

जिला प्रशासन का कहना है कि धरती आबा अभियान को मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। इससे पूर्व की योजनाओं के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कार्ययोजना बनाई गई है। प्रशासन का दावा है कि पिछली योजनाओं की खामियों को इस बार नहीं दोहराया जाएगा। जनजातीय समुदायों के विकास के लिए शुरू की गई योजनाएं तभी सफल होंगी, जब वे कागज़ों से निकलकर गांवों तक पहुंचेगी। धरती आबा अभियान को लेकर उम्मीदें जरूर हैं, लेकिन जब तक पूर्व की योजनाओं की अधूरी कहानियां पूरी नहीं होतीं, तब तक समावेशी विकास की तस्वीर अधूरी ही रहेगी।