रायपुर। तकनीकी शिक्षा के अंतर्गत इंजीनियरिंग और टेक्नालॉजी, फॉर्मेस्सी, आर्किटेक्चर और प्लानिंग, एप्लाइड आर्ट्स, काफ्ट एण्ड डिजाइन, होटल मैनेजमेंट और कैटरिंग टेक्नालॉजी, एमसीए, मैनेजमेंट जैसे पाठयकम-कार्यकम शामिल है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले देश में तकनीकी शिक्षा की गति बहुत धीमी रही है. आवश्यकता और मांग के अनुरूप पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा किये गये प्रयास के फलस्वरूप और विशेषकर 80 के दशक में नीतियों में परिवर्तन के कारण निजी और स्वैच्छिक संस्थाओं की भागीदारी से नई तकनीकी संस्थाओं की स्थापना में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. तकनीकी शिक्षा संस्थाओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ उनके नियमन और प्रत्याययन के लिये अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद जैसे निकाय अस्तित्व में आया.
तकनीकी शिक्षा के विस्तार में छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं रहा है. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में शासकीय, स्वशायी-स्ववित्तीय और निजी क्षेत्र में कल 127 मान्यता प्राप्त तकनीकी संस्थाएं हैं. जिनमें डिप्लोमा, स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा दी जाती है. इन संस्थाओं में अनुमोदित प्रवेश संख्या (2020-21) डिप्लोमा स्तर में 11684 , स्नातक स्तर में 14386 और स्नातकोत्तर स्तर में 2942, इस प्रकार कुल प्रवेश संख्या 29012 है. यदि छत्तीसगढ़ की कुल आबादी (लगभग ढाई करोड़) के आधार पर प्रतिशत निकाला जाये तो यह केवल 0.12 प्रतिशत होता है. यानि लगभग 120 सीटें प्रति लाख की आबादी पर. यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत की तुलना में लगभग 100 अंक पीछे है.
यह अंतर आज का नहीं है, इसके पहले भी राष्ट्रीय औसत से अविभाजित मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा पीछे ही रहा है. इस प्रकार हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ में तकनीकी शिक्षा के विस्तार की आवश्यकता है, लेकिन दूसरी ओर तकनीकी शिक्षा के प्रति युवाओं में रूझान की कमी के कारण विगत वर्षों में तकनीकी सस्थाओं में प्रवेशित संख्याओं में निरंतर गिरावट आने से कई तकनीकी संस्थाएं बंद होने के कगार पर है. यह विरोधाभास तकनीकी शिक्षाविदों और सरकार के लिये चिंता का विषय होना चाहिये.
यदि उच्च शिक्षा की बात करें तो वहां भी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है. छत्तीसगढ़ में 10वीं और 12वीं उत्तीर्ण करने वाले हजारों छात्र आगे की पढ़ाई बंद कर देते हैं. वे या तो छोटे-मोटे कारिगर बनकर रह जाते हैं या सामान्य मजदूर. एक अनुमान के अनुसार उच्च शिक्षा के लिए मात्र 20 से 25 प्रतिशत 10+2 उत्तीर्ण छात्र महाविद्यालयों में प्रवेश लेते हैं. यह संख्या उत्तरोत्तर कम होती जाती है. इसका मोटा-मोटा आंकलन प्राथमिक शाला से लेकर महाविद्यालय की संख्याओं की पिरामिडीय प्रवृत्ति से भी किया जा सकता है. किसी भी उन्नत प्रदेश में प्राथमिक शालाओं, माध्यमिक शालाओं और महाविद्यालयों की संख्या बराबर क्यों नहीं हो सकती जहां शालात्यागी बच्चों की सख्या लगभग शून्य हो.
ऐसा कहा जाता है कि तकनीकी शिक्षा प्राप्त स्नात्कों के लिये आज रोजगार नहीं है. इसलिए युवाओं का रूझान तकनीकी शिक्षा के प्रति कम हुई है. यह एक छोटा-सा कारण हो सकता है पर पूरा जिम्मेदार कारण नहीं. आज भी व्यावसाय में और उद्योगों में कुशल तकनीकी ज्ञान प्राप्त युवाओं की जरूरत है. केवल परीक्षा उत्तीर्ण कर उपाधि प्राप्त कर लेना तकनीकी शिक्षा में पर्याप्त नहीं माना जा सकता. छत्तीसगढ़ में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि के लिये बहुत-कुछ किये जाने की आवश्यकता है. इनमें प्रमुख है योग्य प्राध्यापक, प्रयोगशालाओं का उन्नयन कौशल विकास और सतत् मूल्यांकन. भारी भरकम सैद्धांतिक पाठ्यक्रम तकनीकी शिक्षा के विकास में उतने सहायक नहीं होंगे. जितने प्रयोगोन्मखी और हैण्डऑन प्रशिक्षण. इसके लिये योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों के अतिरिक्त तकनीकी शिक्षा को प्रदेश में सक्षम एवं समुचित, प्रशासनिक और अकादमिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है.
लेखक- स्व. डॉक्टर दर्शन सिंह बल. यह उनका अंतिम लेख है.
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