मनोज यादव, कोरबा. रविवार की रात को मौसम ने ऐसी करवट ली कि शहर में अफरा-तफरी की स्थिति बन गी. अचानक आए तेज आंधी से दर्जनों घर का छप्पर उड़ गए, वहीं शहर व उपनगरीय इलाकों में सैकड़ों पेड़ धराशाई हो गए. आंधी की चपेट में आने से एक कंपनी के करीब 17 लोगों की जान आफत में पड़ गई. कोयला खदान के समीप स्थित मजदूरों की बस्ती तबाह हो गई. लोगों ने भाग कर किसी तरह अपनी जान बचाई. घायलों को निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

रविवार की रात आई आंधी का स्तर क्या था यह नजारा कुसमुंडा खदान में काम करने वाली वीजीआर कंपनी में कार्यरत मजदूरों की बस्ती को देखकर लगाया जा सकता है. रात के वक्त तमाम श्रमिक अपने घरों में आराम कर रहे थे. इस दौरान एकाएक मौसम बदलने के साथ आए तेज आंधी बस्ती को तबाह कर दिया. लोग अपनी जान बचाने यहां वहां भागने लगे. इस दौरान करीब 17 मजदूर मलबे की चपेट में आने से जख्मी हो गए, जिनका इलाज निजी अस्पताल में चल रहा है.

धराशाई हो गए कच्चे और घांस-फूंस के आवास

लोगों को भागने का मौका ही नहीं मिला क्योंकि इनके आवास कच्चे व घांस-फूस के थे. लिहाजा, एक भी घर महफूज नहीं रहे. रात के अंधेरे में मौके पर भगदड़ मच गई थी. किसी तरह लोगों ने अपनी जान बचाई. बताया जा रहा है सूचना मिलने पर कंपनी के अधिकारी मौके पर पहुंचे और आनन-फानन में घायलों को निजी अस्पताल पहुंचाया गया. फिलहाल, लोग अपने सामान को समेटकर नया आशियाना बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

मजूदरों को स्थायी आवास देने पर ध्यान नहीं

प्राकृतिक आपदा को तो रोका नहीं जा सकता मगर सावधानी बरतकर उसने बचाओ जरूर किया जा सकता है आंधी के तांडव में फंसे मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने में कंपनी द्वारा कोताही बरती जाती है. इन मजदूरों से काम तो डटकर लिया जाता है, मगर इन्हें सुरक्षित व स्थायी आवाज देने में किसी का ध्यान नहीं जाता है. यही वजह है कि आंधी के कहर से पूरी की पूरी बस्ती तबाह हो गई. वहीं 1 दर्जन से अधिक मजदूर घायल हो गए. फिलहाल, घायलों की जान तो बच गए. मगर इस घटना से विभिन्न कंपनियों को सबक लेने की जरूरत है, ताकि असमय ही किसी की जान ना गंवानी पड़े.