Maharashtra MVA Seat Sharing: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और अभी तक विपक्षी गठबंधन MVA में सीटों का फैसला नहीं हुआ है. कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) अभी भी विदर्भ की 12 सीटों पर समझौता नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रामटेक और अमरावती सीटें दी थीं, जो अब विधानसभा में अधिक सीटें चाहते हैं.
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शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट ने 12 सीटों का दावा किया है. पार्टी का कहना है कि उन्होंने ये सीटें मांगी हैं क्योंकि महाविकास अघाड़ी से कोई भी मौजूदा विधायक इन सीटों पर नहीं है, इसलिए कांग्रेस को सावधान रहकर शिवसेना यूबीटी को ये सीटें देनी चाहिए.
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उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस के बीच विदर्भ की 12 सीटें हैं:
1. अरमोरी विधानसभा क्षेत्र—BJP विधायक कृष्णा गजबे
2. गढ़चिरौली-देवराल होली (BJP विधायक)
3. गोंदिया: विधायक विनोद अग्रवाल (निर्दलीय)
4. भंडारा: विधायक नरेंद्र भोंडेकर (निर्दलीय)
5. चिमूर: श्री कीर्ति कुमार, BJP विधायक
6. बल्लारपुर: सुधीर मुनगंटीवार (BJP विधायक)
7. चंद्रपुर-किशोर जोरगेवार (निर्दलीय विधायक)
8. रामटेक: आशीष जायसवाल, शिंदे गुट का समर्थक निर्दलीय विधायक
9. कमाठीपुरा: टेकचंद सावरकर (BJP विधायक)
10. South Nagpur: BJP विधायक मोहन मते
11. अहेरी: धर्मराव बाबा अतराम (NCP विधायक)
12. भद्रावती वरोरा: प्रतिभा धनोरकर (कांग्रेस की विधायक थीं लेकिन अब लोकसभा सांसद चुन चुकी हैं)
कांग्रेस-उद्धव गुट कांग्रेस भी इन 12 सीटों पर दावा करने के साथ ही नासिक पश्चिम सीट पर चुनाव लड़ने पर भी जोर दे रही है. इस सीट पर शिवसेना-ठाकरे गुट ने सुधाकर बडगुजर की उम्मीदवारी को लगभग अंतिम रूप दिया है, इसलिए संजय राउत और अनिल देसाई 11.00 बजे ही बैठक से निकल गए.
बीते दिन, उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी ने विधायकों और नेताओं की एक आपात बैठक बुलाई क्योंकि ऐसा लगता था कि सीटों का बंटवारा तुरंत हल नहीं होगा अगर यह इसी तरह से उलझता रहा.
क्या MVA का अस्तित्व खतरे में?
शिवसेना यूबीटी के नेताओं ने दिल्ली कांग्रेस हाईकमान और शरद पवार को अपनी नाराज़गी बताई है. अब कांग्रेस आलाकमान महाराष्ट्र एमवीए विवाद पर नजर रख रहा है. सीईसी की दिल्ली में होने वाली बैठक भी टाल दी गई है, और महाराष्ट्र से दिल्ली आने वाले कांग्रेस नेताओं को दिल्ली में ही रहने का आदेश दिया गया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि एमवीए में सीट शेयरिंग का मुद्दा हल होगा या गठबंधन का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा?
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