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अमृतसर. शिरोमणि कमेटी की आंतरिक समिति और श्री अकाल तख्त साहिब के जथेदार के बीच चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब शिरोमणि अकाली दल की नई सदस्यता अभियान पर नजर रखने वाली 7 सदस्यीय समिति के 5 सदस्यों ने अमृतसर में श्री अकाल तख्त साहिब के सिंह साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह से मुलाकात की.
मुलाकात के बाद समिति के सदस्यों ने कहा कि 1925 का गुरुद्वारा एक्ट न तो श्री अकाल तख्त साहिब पर लागू होता है और न ही जथेदारों पर. इस बयान के बाद गुरुद्वारा एक्ट और जथेदारों के अधिकार क्षेत्र को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. इससे पहले, जथेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने आंतरिक समिति के बयान पर हैरानी जताई थी.
क्या है 1925 का गुरुद्वारा एक्ट?
ब्रिटिश शासन के दौरान कई महंतों और बाहरी लोगों ने गुरुद्वारों पर कब्जा कर लिया था, जिससे वहां मर्यादा का पालन नहीं हो पा रहा था. गुरुद्वारों में मूर्ति पूजा तक शुरू हो गई थी, जिसका सिखों ने कड़ा विरोध किया.
इसके बाद सिखों ने गुरुद्वारा सुधार आंदोलन शुरू किया, जिसमें कई मोर्चे लगे और हजारों सिखों ने अपनी जान कुर्बान की. आंदोलन के दबाव में ब्रिटिश सरकार को गुरुद्वारों का प्रबंधन सिखों को सौंपना पड़ा, जिसके लिए 1925 में एक कानून बनाया गया, जिसे गुरुद्वारा एक्ट कहा जाता है.
गुरुद्वारा एक्ट के तहत कैसे होता है प्रबंधन?
इस एक्ट के तहत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के चुनाव होते हैं, जिनमें सिख समुदाय द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते हैं. इसके बाद कमेटी में अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों का चयन किया जाता है, जो गुरुद्वारों का प्रबंधन संभालते हैं.
वर्तमान में हरजिंदर सिंह धामी SGPC के अध्यक्ष हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
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