रायपुर। सवर्ण आरक्षण की आय सीमा को लेकर सूबे की राजनीति आने वाले समय में और भी गरमा सकती है. सर्व आदिवासी समाज ने सवर्णों के लिए निर्धारित की गई आय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. सर्व आदिवासी समाज अब आंदोलन के साथ ही कोर्ट में चुनौती देने की रणनीति बनाई है. गोंडवाना भवन में हुई बैठक में समाज के नेताओं ने सरकार द्वारा सवर्णो की गरीबी के मापदंड पर सवाल उठाया. बैठक में निर्णय लिया गया है कि समाज और बुद्धिजीवियों की बैठक कर आंदोलन के साथ कोर्ट का रास्ता अपनाएगी. समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने कहा कि आदिवासी और सतनामी ढाई लाख की आय में गरीब नही सवर्ण 8 लाख से कम कमाए तो गरीब कहलायेगा. हम सरकार के गरीबी के मापदंड का विरोध करते हैं. उन्होंने कहा कि देश मे सभी जाति के लिये गरीबी का मापदंड एक ही होना चाहिए.

बीपीएस नेताम ने कहा कि सरकार का निर्णय है कि वो सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देगी उसमे हमें कोई आपत्ति नहीं लेकिन जनसंख्या के अनुपात में जो आरक्षण मिलना चाहिए संविधान के तहत उसके लिए हमने काफी आंदोलन किया तब आरक्षण तो मिल रहा है. ये जो आय की सीमा निर्धारित कर दिया है आरक्षित वर्ग एसटी एससी के लिए ढाई लाख की सीमा. ढाई लाख जिनकी वार्षिक आय है वो बच्चे को क्या आगे बढ़ा पायेगा. आजकल एक चपरासी का वार्षिक आय भी 3 लाख से ऊपर हो गया है तो किसान गरीब ये जिनकी कोई निर्धारित आय होती ही नहीं है.

अब ये ढाई लाख की आय सीमा वाले बच्चों को प्रायमरी मिडिल पढ़ा सकते है लेकिन उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों को नहीं भेज सकते  और ओबीसी के लिए 6 लाख जो आय सीमा निर्धारित किये थे वो 8 लाख हो गया. सवर्णों के लिए भो 8 लाख निर्धारित किये हैं. उनके लिए 8 लाख तक के लोग गरीब कहलायेंगे और एससी-एसटी के लोगों की ढाई लाख की आय सीमा है उससे ज्यादा आय वाले अमीर कहलाएंगे तो यह भारी अन्याय है. इसके लिए हम लोग बहुत चिंतित है इसके लिए हम लोग कोर्ट भी जा सकते है. आंदोलन भी कर सकते हैं. पिछली सरकार से भी बात किये थे वर्तमान सरकार से भी चर्चा किये हैं कि जातिगत आरक्षण है एससी-एसटी के लिए आय सीमा निर्धारित होनी ही नही चाहिए. इसके लिए आगे हम लड़ाई लड़ेंगे.