कर्ण मिश्रा,ग्वालियर। माना कि मेरे हाथों की लकीरें नहीं, फिर भी मैंने अपने हौसलों की उड़ान से अपनी तकदीर बनाई है. इंसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो शारीरिक लाचारी भी उसकी कामयाबी के आड़े नहीं आती. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है ग्वालियर जिले के बृजेश ने. बृजेश दोनों हाथों से दिव्यांग हैं, एक आंख भी नहीं है. फिर भी वह कमाल के क्रिकेटर हैं. जिला स्तर की टीम खेल चुके बृजेश मध्य प्रदेश की टीम में दस्तक देने को तैयार हैं. खास बात ये है कि यह क्रिकेटर दिव्यांग हाथ और पैरों से लिखता है. पीएससी की तैयारी कर रहे इस खिलाड़ी को उम्मीद है एक दिन वो कामयाब होगा.

संघर्ष की कहानी

तस्वीरों में नजर आ रहे यह दिव्यांग बृजेश है. जिनके साथ 2005 में एक हादसा हुआ. इस हादसे ने उनका सब कुछ छीन लिया. हादसे में दोनों हाथ और एक आंख चली गई, लेकिन बृजेश का जज्बा ही रहा कि आज दिव्यांग होने के बावजूद कोई कह नहीं सकता कि बृजेश लाचार है. इस घातक हादसे के बाद भी बृजेश ने हार नहीं मानी. इस जज्बे ने उसे न सिर्फ जीने का की नहीं बल्कि कुछ ऐसा कर गुजरने का हौसला दिया. जिसके कारण आज हर कोई बृजेश से प्रेरणा ले रहा है. खासकर वह दिव्यांग जो आज लाचारी से झूझ रहे है.

पहले पैर, फिर हाथों से लिखना शुरू किया

शुरुआती दौर में बृजेश ने जब पढ़ना शुरू किया, तो उसके सामने बहुत समस्या आई, वह लिखें कैसे ? कैसे अपने जीवन यापन को लेकर काम करे. ऐसे में शुरुआत में उन्होंने पैरों से लिखना शुरू किया. वह बताते हैं कि शुरू शुरू में तो उन्हें काफी कठिनाई हुई, लेकिन धीरे-धीरे प्रैक्टिस होती गई और बाद में वह अपने दोनों हाथों के बीच कलम दबाकर लिखना भी सीख गए.

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बेहतरीन क्रिकेटर, सिविल सेवा की तैयारी

बृजेश ने 10वीं 12वीं करने के बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई की और वह अब सिविल सेवा की तैयारी कर रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह बेहतरीन क्रिकेटर भी हैं. वह जिला स्तरीय दिव्यांग टीम के धुआंधार खिलाड़ी हैं. जल्द ही वह मध्य प्रदेश की टीम में भी शामिल होंगे.

कुछ सालों पहले सिर से पिता का उठा साया

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले बृजेश के सिर से कुछ सालों पहले पिता का भी साया उठ गया था. मां गिरिजा बाई ने उन्हें हिम्मत से बड़ा किया. वह बृजेश को कामयाब बनाने में लगातार सहयोग दे रही हैं. मां गिरजा बाई कहती हैं कि ब्रजेश ने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया. मां गिरजा बाई का कहना है कि मुझे उम्मीद है कि बृजेश एक दिन जरूर सफल होगा और उसे नौकरी मिलेगी.

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घर में बनाई लाइब्रेरी

गौरतलब है कि बृजेश ने अपने घर एक लाइब्रेरी भी तैयार की है. उसमें तरह-तरह की किताबें हैं. बृजेश का कहना है कि किताबें आपको भटकने नहीं देतीं. वह आपकी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं.

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