रायपुर।विनोद दुबे: कोरोना तेजी से देश के भीतर अपने पैर पसारते जा रहा है. देश के 29 राज्य इस वायरस के चपेट में है. अगर आंकड़ों की बात करें तो कोरोना पॉजीटिव का आंकड़ा 3500 को पार कर चुका है और मौत का आंकड़ा 100 के करीब पहुंचते जा रहा है. विश्व भर में तबाही, मौत और संक्रमणों के बीच भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आह्वान पर लोगों ने अपने घर की लाइट बंद कर घर के बाहर दीये जलाए.. प्रधानमंत्री के आह्वान को सफल बनाने के लिए देश के कई न्यूज चैनलों ने इसे 9 मिनट की दीवाली तक करार दिया था और् एंकरों ने लोगों से अपील की थी. लिहाजा देश भर में दीये तो जले ही साथ ही जमकर आतिश बाजी भी हुई. छत्तीसगढ़ में दीप रोशन करने के साथ ही आम जनता ने न्यूज चैनलों के आह्वान पर दीवाली मना लिया. कई जिलों में जमकर आतिशबाजी भी हुई. तरह-तरह के पटाके जलाए गए. बड़े-बड़े धमाकों के साथ आकाश पटाखों की रंग-बिरंगी रोशनी से रोशन हो गए.
लॉक डाउन के बीच देश में तेजी से कोरोना संक्रमण फैल रहा है. रविवार तक 87 लोगों की मौत हो चुकी है. याने इतने घरों में मातम का माहौल है और 3577 लोग संक्रमित पाए गए हैं याने कि लगभग इतने ही परिवार मौत के खौफ से हर पल मर रहे होंगे, मौत की दहशत के बीच एक-एक पल गिन रहे होंगे. हम इनमें उन डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को गिनना तो भूल ही गए. दर्जनों डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी संक्रमितों के इलाज के दौरान खुद भी संक्रमित हो गए. डॉक्टर-नर्स सहित लाखों में मेडिकल स्टाफ दिन-रात अस्पतालों में ड्यूटी कर रहा है. विश्व में बढ़ रहे आंकड़ों के बीच पीपीई सहित अन्य सुरक्षित साधनों के अभाव के बीच में ये मेडिकल स्टाफ अपने और अपने परिवार की फिक्र छोड़कर संक्रमितों का इलाज कर रहा है. याने कि इन सभी का परिवार भी हर पल खौफ में जी रहा होगा. वो पुलिस कर्मी जो दिन रात ड्यूटी कर रहे हैं. वो भी अपने परिवार से दूर हैं, दिनरात उनका परिवार भी टीवी पर नजर गढ़ाए बैठे रहता होगा कि देश में कोरोना का हालात क्या हैं, उनका भी परिवार एक अनजाने खौफ में जी रहा होगा. ऐसे में यह दीवाली शायद सभी के ज़ख्मों में मरहम की बजाय नमक छिड़कने जैसी रहा होगा. और यह सब नम आंखों से इतिहास भी देख रहा होगा कि दर्द और आंसुओं के सैलाब में भरोसा दिलाए जाने की बजाय कैसे यह देश दीवाली मना रहा है.
हम राम राज्य की बात करते हैं हम सनातन धर्म की बात करते हैं लेकिन क्या राम राज्य में ऐसा ही होता रहा होगा. क्या सनातन धर्म यही सीख देता था कि जहां लोग दर्द में हैं मौत का मातम है वहां दीप जले और पटाखे फूटे. ये कैसी असंवेदनशीलता है जिसे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को सिखा रहे हैं. हम में से कोई नहीं जानता कि यह आंकड़े और कितना बढ़ेंगे लेकिन मैं इतना जरुर जान रहा हूं कि अब हमें मौत और मातम को सेलीब्रेट करना सीखा दिया गया है.
नोट:- ये लेखक के अपने निजी विचार है