समय के साथ अब ये ट्री नजर नहीं आ रहा है बल्कि उसकी जगह फैमली प्लांट नजर आने लगा है। प्रायमरी कक्षा में बच्चों को उनके परिवार के सदस्यों का उल्लेख करते हुए एक फैमली ट्री बनाने का महत्वपूर्ण काम दिया जाता है। कुछ दिन पहले एक सज्जन के यहां हमारा जाना हुआ आप तो जानते हैं कि बाहर से कोई भी व्यक्ति यदि आता है तो बच्चे पहले से अधिक पढाई करने लगते हैं तो और आए हुए व्यक्ति को अपनी प्रतिभा से अवगत भी कराना चाहते हैं, तो कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ वहां एक बच्चे से हमारी मुलाकात हुई. उस बच्चे ने मेरी तरफ देखा और पूछा कि क्या आप मेरी फैमली ट्री देखेगें मैं कुछ कहता उसके पहले ही उस बच्चे ने अपनी फैमली ट्री मु-हजये दिखाना शुरू कर दिया.

उस फैमली ट्री को देखकर मैं सोच में पड़ गया, कई सवाल जेहन की चैखट पर आ गए, वर्तमान सामाजिक परिदृष्य में कैसे परिवार सिमटते जा रहे हैं, उसकी व्याख्या कर रहा था। वह फैमली ट्री, उस बच्चे ने अपनी फैमली ट्री में मम्मी-पापा बहन को ही क्यों रखा? और अन्य परिवार के सदस्यों को क्यों नहीं?, यह सोचते हुए मैं अपने बचपन की यादों में चला गया मुहजये याद आई अपनी फैमली ट्री जिसमें कई शाखायें थी पापा-मम्मी, और बहनों के अलावा दादा-दादी, नाना-नानी उसमें सबको स्थान मिला था और तो और हमारे यहां काम करने वाली दाई जो बहुत प्यार करती थी उसे भी फैमली ट्री में मैंने स्थान दिया था, इसलिए संवेदनशीलता की नमी पाकर मेरी फैमली ट्री की जड़े अभी की फैमली ट्री से कहीं अधिक मजबूत लग रही थी।

बदलते परिवेश ने रिश्तों को भी संकुचित कर दिया है इसलिए फैमली ट्री फैमली प्लांट नजर आने लगी है। हम शुरू से बच्चों के मन मे डालते हैं कि आप कैरियर ओरियेन्टेट बने ना कि फैमली ओरियेन्टेट ज्यादा रिश्तेदारी संबंध निभाने वाले बच्चे पढाई में आगे नही जा पाते हैं, परिवार का आशय सिर्फ मम्मी पापा भाई बहन का ही नैतिक ज्ञान हम बच्चों को देते है, इसलिए बच्चों की जिंदगी और ड्राईंगशीट से परिवार के अन्य सदस्य कम होते जा रहे है।

वास्तव में समाज को विशाल फैमली ट्री की आवश्यकता है, जिसकी मजबूत जड़े हमें सशक्त और संस्कारवान बनाये और यही हमारे देश की पहचान भी है। परिवार के सदस्यों एवं शिक्षकों के माध्यम से ही संकुचित होते परिवार को विस्तारित रूप देकर समाज में व्याप्त सवांदहीनता को समाप्त किया जा सकता है। जिससे वास्तव में परिवार एक फैमली ट्री नजर आएं।

लेखक-संदीप अखिल