रायपुर। दिव्यांग सशक्तिकरण के लिए छत्तीसगढ़ को लगातार दो बार राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय पुरुस्कार मिल चुका है, लेकिन इसके इतर जो हकीकत निकलकर सामने आ रही है उससे कई तरह के सवाल उठ खड़े हो रहे हैं. क्या राज्य के अफसर पुरस्कार हासिल करने के लिए केन्द्र सरकार को गलत आंकड़े पेश करते हैं या फिर केन्द्र द्वारा उन आंकड़ों के सत्यता की जांच नहीं की जाती है.
दरअसल पाटन विधायक और पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने विधानसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री रमशीला साहू से प्रदेश के जिलों में पंजीकृत दिव्यांगों की जानकारी मांगी थी. अपने सवाल में उन्होंने मंत्री से यह भी पूछा था कि कितने दिव्यांगों को पेंशन लाभ मिल रहा है. जिसके जवाब में मंत्री ने लिखित उत्तर पेश किया है.
प्रदेश में पंजीकृत दिव्यांग जनों की संख्या 277707 (दो लाख सतहत्तर हजार सात सौ सात) है. जिसमें कि 146331 (एक लाख छियालिस हजार तीन सौ इकत्तीस) दिव्यांगों को पेंशन लाभ मिल रहा है. याने कि 52.69 प्रतिशत लोगों को ही इसका लाभ मिल रहा है जबकि 131376 (एक लाख इकत्तीस हजार तीन सौ छियत्तर) दिव्यांगों को पेंशन लाभ नहीं मिल रहा है जो कि कुल पंजीकृत संख्या का 47.30 प्रतिशत है. हम कह सकते हैं कि सरकार उन आधे लोगों तक ही पहुंच पा रही है जो कि रजिस्टर्ड हैं जबकि बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी होंगे जो अपनी लाचारी की वजह से रजिस्ट्रेशन किन्हीं वजहों से नहीं करा पाए.
सरकार द्वारा दिव्यांगों को प्रतिमाह में जीवन यापन करने के लिए 500 रुपए की पेंशन राशि दी जाती है. जिसमें की 300 रुपए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा 200 रुपए दिए जाते हैं. 18 से 79 वर्ष के आयु वर्ग के गंभीर एवं बहु निःशक्त व्यक्तियों को ही पेंशन की पात्रता है.
दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण के लिए छत्तीसगढ़ को वर्ष 2016 में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया वहीं वर्ष 2017 में निःशक्तता के क्षेत्र में कार्य करने हेतु छत्तीसगढ़ राज्य को सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. ऐसे में सरकार के ये आंकड़े इस लिहाज से हैरान करने वाले हैं कि क्या देश के बाकी राज्यों के हालात छत्तीसगढ़ से भी ज्यादा बदतर हैं. जब लगभग आधी संख्या को सरकार द्वारा किसी तरह की सुविधा या लाभ नहीं दिया जा रहा है.