रायपुर. किशोर बच्चों को संभालना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. आज के युवा वर्ग की मानसिकता की संपूर्ण और गहरी समझ के साथ इन बच्चों का दिल कैसे जीता जा सकता है. बच्चों की शिक्षा, सद्चरित्र महत्वपूर्ण दायित्व है, जो माता- पिता और शिक्षक के कंधो पर होता है.
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हर समाज में बड़े और सकारात्मक परिवर्तन का आरंभ बच्चों की शिक्षा- सद्चरित्र से होता है. जो बच्चे बचपने से ही बुरे हो जाते हैं, उनके बुरे प्रभाव से समाज अछूता नहीं रहता है और उसका नकारात्मक प्रभाव समाज पर अवश्य पड़ता है.
बच्चों की कुंडली में अगर शनि, शुक्र व राहु जैसे ग्रह लग्न, तीसरे, एकादश या द्वादश स्थान में हों या लग्नेश, तृतीयेश, पंचमेश, सप्तमेश या दशमेश होकर इन स्थानों पर हो जाए, तो बच्चे आज्ञापालन करना, चरित्रवान रहना और पढ़ाई पर ध्यान देना जैसे अच्छे कार्य से मुहॅ मोड़कर दोस्तो के साथ घुमना, फैशन तथा अन्य शौक पर ध्यान देने लगते हैं.
किशोर बच्चों को ज्ञानवान एवं चरित्रवान बनाने के लिए शनि, राहु एवं शुक्र की दशा एवं अंतरदशा का आकलन कर उचित उपाय कराना चाहिए. मंगल का व्रत करने और हनुमान चालीसा या मंगल स्त्रोत का पाठ करने से बच्चो में अनुशासन बना रहता है. इसके साथ ही अगर ज्यादा ही एडोल्सी का प्रभाव दिखाई दे तो भृगु कालेंद्र पूजन कराना, एस्टोकाउंसिलिग कराना एवं नियम से मंगल मंत्रजाप करने की आदत डालना चाहिए.