रायपुर। आज मैं एक प्रसिद्ध चिकित्सक हूँ. मैंने केयर ग्रुप के साथ मिलकर बड़ा अस्पताल तैयार भी कर लिया है. मेरे अस्पातल में मेरे जैसे कई बड़े डॉक्टर कार्यरत् हैं. हर दिन बड़ी संख्या में मरीज आते हैं. पूँजीपतियों से लेकर गरीब परिवार के लोग भी इलाज कराने आते हैं. बावजूद इसके और कई दशकों की डॉक्टरी के बाद भी तृप्त नहीं हो पाया हूँ. मुझे कुछ सवाल हैं जो कचोटते रहते हैं. लगता है कि मैं उन सपनों को पूरा नहीं कर पाया हूँ जिसे बचपन के दिनों में देखते रहा हूँ. मुझे लगता है कि मैं गरीबों तक सही मायने में पहुँच ही नहीं पाया हूँ. मेरी कोशिश आज इसी दिशा में है. ये कहना रामकृष्ण केयर अस्पताल के निदेशक डॉ. संदीप दवे का.

डॉ. दवे के किस्सें

लल्लूराम डॉट कॉम से विशेष बातचीत में डॉ. दवे ने अपने जीवन से जुड़े कई किस्से बताएं. वे बताते हैं कि उनकी पढ़ाई बैरन बाजार स्थित होलीक्रास स्कूल से हुई. पहली से लेकर ग्यारहवीं बोर्ड की पढ़ाई होली क्रास से करने के बाद उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई रायपुर मेडिकल कॉलेज से की है. वे कहते हैं कि बचपन से ही वे अस्थमा से ग्रसित रहे हैं. वे बहुत जल्दी ही बुखार से पीड़ित हो जाते रहे. लिहाजा डॉक्टरों को अक्सर अपने सामने ही पाते रहे. इसी तरह से मन ही डॉक्टरों के प्रति एक श्रद्धा भाव रही है. फिर पहले डॉक्टरों बहुत ही ज्यादा पारिवारिक होते थे. घर आकर डॉक्टर इलाज करते थे. एक आत्मीय और घरेलु जुड़ाव डॉक्टरों से हो जाता था. ये तमाम चीजें मेरे दिलो-दिमाग पहले से ही रही. इसके साथ ही मेरे मामा भी डॉक्टर रहे. उनसे भी मुझे प्रेरणा मिलती रही. इस तरह से मैंने भी यह तह किया डॉक्टर ही बनूँगा.

पिता से सीखी बातें

डॉ. दवे बताते हैं कि पिता अनुशासन के बेहद पक्के रहे. उन्हें अनुशासनहीनता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं रही. वे हमेशा मुझे प्रेरित करने के लिए कहते कि दूसरों की लाइन छोटी नहीं करनी है, अपनी लाइन बड़ी खींचनी है. समय दूसरों की ओर देखने में जाया नहीं करना है, बल्कि स्वयं को आगे रख भविष्य गढ़ना है. मैंने पिता जी मिली इस सीख को जीवन गांठ बांध के रख ली. मैंन नहीं जानता कि मैं कितना अनुशासित रह पाया हूँ, लेकिन मेरी कोशिश यही रही है कि पिता जी के दिखाए आदर्शों पर चलूँ.

आस्था क्लिनिक से शुरुआत 

डॉ. दवे कहते हैं कि 90 के दशक में डॉ. राजेश त्रिवेदी के साथ मिलकर छोटा पारा में हमने आस्था क्लिनिक की शुरुआत की. धीरे-धीरे हम आगे बढ़ते गए. फिर 2001-02 में पत्नी ने कहा कि उन्होंने एक जमीन खरीदी है. लालपुर इलाके में है. वहाँ पर हम एक अस्पताल का निर्माण कर सकते हैं. पार्किंग की भी समस्या नहीं रहेगी. इस दौरान फिर मैंने सोचना शुरू किया. अपने कई डॉक्टरों मित्रों से बातचीत की. लेकिन जरूरी था कि तकनीकी तौर पर हम सक्षम हो. लिहाजा मैंने केयर ग्रुप से चर्चा की. उन्होंने संयुक्त रूप में अस्पताल खोलने पर सहमति प्रदान की. इस तरह से 2006-07 में हमारा रामकृष्ण केयर अस्पताल अस्तिव में आ सका.

गरीबों तक पहुँचना चाहता, उन्हें अपने करीब लाना चाहता हूँ

डॉ. दवे कहते हैं आज अनेक उपलब्धियाँ है. काम है, नाम है, दाम, लेकिन फिर भी ऐसा लगता है जैसे गरीबों के लिए बहुत कुछ करना बाकी है. मैं गरीब से गरीब लोगों तक पहुँचना चाहता हूँ. मेरी इच्छा है कि अस्पताल में प्रवेश करते वक्त कोई गरीब डरे नहीं. उनके अंदर किसी तरह से कोेई डर की भावना न रहें. मैं चाहता हूँ कि मैं गरीबों की सेवा करूँ. मैं गरीबों को अपने बेहद नजदीक लाना चाहता हूँ. मैं अपने सपनें को सच करना चाहता हूँ. मैं नहीं जानता व्यवसायिक चुनौतियों और ज़िंदगी की जद्दोज़ेहद के बीच मैं अपने लक्ष्य को पूरा करने में कितना सफल हो पाऊँगा. लेकिन इस दिशा में मेरी कोशिशें जारी है.

देखिए पूरी बातचीत इस लिंक में…

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