रात्रि में दिया गया दान केवल एक कर्म नहीं, बल्कि अंधकार में रोशनी फैलाने की आध्यात्मिक क्रिया है. दान को धर्म का एक मुख्य अंग माना गया है. परंतु कम लोग जानते हैं कि रात्रि में किया गया दान सामान्य से दस गुना फलदायी माना गया है. यह मान्यता केवल जनश्रुति नहीं, बल्कि धर्मग्रंथों और आध्यात्मिक अनुशासन का हिस्सा है. आखिर रात के समय दान क्यों इतना प्रभावशाली माना गया है? आइए समझते हैं इसके पीछे की धार्मिक और आध्यात्मिक सोच को.

शास्त्रों के अनुसार रात का समय तमोगुण की प्रधानता का होता है. इस समय जब कोई व्यक्ति अज्ञान, मोह या निद्रा की स्थिति में होता है, तब यदि कोई ‘सत्कर्म’ अर्थात दान जैसे प्रकाशमय कार्य करता है, तो वह अंधकार में दीपक जलाने जैसा होता है. यही कारण है कि उसका पुण्य दस गुना तक बढ़ जाता है.
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि गुप्त दान ही श्रेष्ठ दान होता है. इस समय किया गया दान बिना दिखावे और दिखावे की अपेक्षा के होता है. इस निःस्वार्थता के कारण दानकर्ता को कई गुना अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है.
गरुड़ पुराण, अग्नि पुराण और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि यः रात्रौ ददात् दानं, स पुण्यं दशगुणं लभेत. अर्थात जो रात्रि में दान करता है, वह दस गुना पुण्य प्राप्त करता है.
किसे, क्या और कैसे देना चाहिए?
रात में अन्न, वस्त्र, कंबल, दीपक या रुपये जैसे जरूरत की वस्तुएं देना श्रेष्ठ माना गया है. इसे बिना प्रचार के, श्रद्धा और करुणा भाव से देना चाहिए।विशेष अवसर जैसे अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी की रात्रि को दिया गया दान विशेष फलदायक होता है.
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