अमित पांडेय. डोगरगढ़. नवरात्र के पावन अवसर पर शुक्रवार देर रात मां बम्लेश्वरी मंदिर में परंपरागत “दाई बमलई पंचमी भेंट” का आयोजन धूमधाम से हुआ। गोंडवाना गोंड समाज की इस ऐतिहासिक परंपरा में पहली बार खैरागढ़ राजपरिवार के राजकुमार भवानी बहादुर सिंह भी शामिल हुए। सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ जब वे माता के दरबार पहुंचे, तो आस्था के इस मंच से मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट व्यवस्था पर उन्होंने खुलकर निशाना साधा।

 भवानी बहादुर ने कहा कि बमलेश्वरी धाम में सदियों से बैगा पूजा को प्राथमिकता दी जाती रही है। यह परंपरा उनके पूर्वजों राजा कमल नारायण के समय से चली आ रही है, लेकिन अब उन्हें और उनके वंश को दरकिनार कर दिया गया है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा “हमारे दादा ने सेवा भाव से ट्रस्ट की नींव रखी थी, सभी वर्गों को उसमें जगह मिली थी, मगर आज हम ही बाहर कर दिए गए हैं। देवी की पूजा में राजपरिवार की भूमिका को अनदेखा करना न केवल परंपरा का अपमान है बल्कि आदिवासी समाज की आस्था को ठेस पहुँचाना भी है। राजकुमार ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट का संचालन अब मूल भावना से भटक गया है और संस्थापक परिवार तक को महत्व नहीं दिया जा रहा। उन्होंने शासन-प्रशासन से अपील की कि चुनाव प्रणाली में सुधार लाया जाए और फाउंडर मेंबर की राय को अनिवार्य किया जाए। चेतावनी भरे लहज़े में उन्होंने यह भी कहा कि अगर समाज को उसका हक नहीं मिला तो गोंड समाज खुद अपना अधिकार लेने को मजबूर होगा।नवरात्र मेले के बीच भवानी बहादुर की इस तल्ख़ बयानबाज़ी ने डोंगरगढ़ में एक बार फिर मंदिर प्रबंधन को विवादों के घेरे में ला दिया है। आस्था और राजनीति के इस टकराव ने आने वाले दिनों में हालात और गरमाने के संकेत दे दिए हैं।

क्या है डोंगरगढ़ का रियासत कालीन इतिहास

डोंगरगढ़ रियासत ब्रिटिश काल में खैरागढ़ और राजनांदगांव के साथ छत्तीसगढ़ की प्रमुख रियासतों में से एक थी, जिसका शासक राजा घासीदास बहादुरी और निर्भीकता के लिए प्रसिद्ध था। 1816 में डोंगरगढ़ से नागपुर भेजे जा रहे कर की राशि को राजा घासीदास ने लूट लिया, जिससे ब्रिटिश हुकूमत हक्का-बक्का रह गई। नागपुर के रेजिडेंट सर रिचर्ड जेडिंक्स ने खैरागढ़ के राजा टिकैत राय और नांदगांव के राजा महंत मौजीराम को आदेश दिया कि डोंगरगढ़ के राजा को बंदी बनाकर नागपुर लाया जाए, और दोनों रियासतों के शासकों ने डोंगरगढ़ पर चढ़ाई कर इसे जीत लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने डोंगरगढ़ का आधा क्षेत्र खैरागढ़ और आधा नांदगांव को सौंप दिया, जबकि खैरागढ़ के राजा टिकैत राय की वीरता से प्रभावित होकर उन्हें सिंह टाइटल और डोंगरगढ़ की गद्दी का अधिकार भी दिया गया। स्वतंत्रता के बाद रियासतों के शासकों को राजकीय सम्मान और पेंशन दी गई और Instrument of Accession पर हस्ताक्षर के साथ खैरागढ़ रियासत भारत का हिस्सा बन गई। राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने अपने पुत्रों रविन्द्र बहादुर और शिवेंद्र बहादुर को क्रमशः खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का प्रबंधन सौंपा और 1976 में माँ बम्लेश्वरी मंदिर के संचालन के लिए ट्रस्ट का गठन किया, जो आज तक मंदिर की पूजा और व्यवस्थाएँ संभाल रहा है। हालांकि, हाल ही में राजपरिवार की ओर से इस ट्रस्ट और मंदिर प्रबंधन को लेकर उठे विवाद ने न केवल डोंगरगढ़ बल्कि पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है।

सुने क्या कहा राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने