अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्यप्रदेश के मऊगंज से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने सिस्टम की संवेदनशीलता और ईमानदारी की धज्जियां उड़ा दी हैं। गौमाता के संरक्षण के नाम पर सरकारी खजाने में ऐसी सेंधमारी की गई है कि सुनकर आप दंग रह जाएंगे। कहीं गौशाला में गाय की जगह गधा बंधा मिला है, तो कहीं बिना एक भी गाय के करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया। अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर कई करोड़ से अधिक की राशि का आहरण कर लिया, जबकि जमीनी हकीकत में न चारा है, न भूसा और न ही गोवंश।
दरअसल, मऊगंज में गौशाला संचालन और मूल्यांकन के नाम पर करोड़ों रुपये से अधिक का संदिग्ध भुगतान सामने आया है। नियमों के मुताबिक, हर महीने गौशाला का भौतिक सत्यापन अनिवार्य है, लेकिन यहां खेल पोर्टल और पासवर्ड के जरिए खेला गया। घोटाले की जड़ें इतनी गहरी हैं कि ब्लॉक पशु चिकित्सा अधिकारी जब पोर्टल पर गायों की संख्या ‘शून्य’ दर्ज करते हैं, तो ऊपर बैठे अधिकारी उसे बढ़ाकर 250 कर देते हैं। वावनगढ़ और मालैगवा जैसी गौशालाओं में जब एक भी गाय नहीं थी, तब भी प्रभारी उपसंचालक स्तर से भुगतान की फाइलें दौड़ती रहीं। न बिल, न वाउचर और बिना किसी रसीद के सरकारी धन का बंदरबांट होता रहा।
भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा तो जनपद पंचायत नईगढ़ी के ग्राम पंचायत कोट में देखने को मिली। जहां गौशाला के नाम पर राशि निकाली जा रही थी, वहां जांच टीम को गाय की जगह एक गधा बंधा मिला। यह न सिर्फ सिस्टम की लापरवाही है, बल्कि गौमाता के नाम पर मिलने वाली श्रद्धा और बजट के साथ क्रूर मजाक है।”
नियमों के उल्लंघन पर बंद की गई ‘हर-हर नर्मदे’ जैसी निजी गौशालाओं को पिछले दरवाजे से 20 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि विधानसभा में विधायक प्रदीप पटेल के सवालों का भी आधा-अधूरा जवाब दिया गया। अब देखना होगा कि इस मामले में क्या कार्रवाई होती है।
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