Doordarshan Day: दूरदर्शन इस एक शब्द के साथ न जाने कितने दिलों की धड़कन आज भी धड़कती है. आज भी दूरदर्शन के नाम से न जाने कितनी पुरानी खट्टी-मिट्ठी यादों का पिटारा हमारी आंखों के सामने आ जाता है. दूरदर्शन लोगों के लिए एक छोटा सा डिब्बा कौतुहल का विषय बन गया. जिसपर चलती बोलती तस्वीरें दिखाई देतीं और जो बिजली से चलता था. ये वो दौर था, जब सबके घरों में टेलीविजन नहीं होता था. आज दूरदर्शन का जन्मदिन है. यानी 15 सितंबर 1959 में प्रारंभ हुआ दूरदर्शन, आज 64 साल का हो गया है.
दूरदर्शन के आने के बाद न जाने कितनी पीढ़ियों ने इसके क्रमिक विकास को जहां देखा है वही अपने व्यक्तिगत जीवन में इसके द्वारा प्रसारित अनेकों कार्यक्रमों और उसके संदेशों का अनुभव भी किया है. दूरदर्शन के पिछले छह दशकों की यात्रा गौरवपूर्ण रही है. सूचना, संदेश व मनोरंजन के साथ-साथ पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का कार्य भी दूरदर्शन ने बखूबी निभाया है. आज भी दूरदर्शन चौबीस घंटे के प्राइवेट चैनलों की भीड़ और बिना सिर पैर की ख़बरों के बीच अपनी प्रासंगिकता और कार्यशैली के कारण अडिग रूप से खड़ा है.
दूरदर्शन का पहला प्रसारण (Doordarshan Day)
आज ही के दिन सन 1959 में दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के आधार पर किया गया था. उस दौर में दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधे–आधे घंटे के लिए होता था. उस समय इसको ‘टेलीविजन इंडिया’ नाम दिया गया था. बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया.
प्रारंभ के दिनों में पूरे दिल्ली में 18 टेलीविजन सेट और एक बड़ा ट्रांसमीटर लगा था. तब लोगों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था. तत्पश्चात दूरदर्शन ने अपने क्रमिक विकास की यात्रा शुरू की और दिल्ली (1965), मुम्बई (1972), कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई. शुरुआत में तो दूरदर्शन यानी टीवी दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था. लेकिन अस्सी के दशक को दूरदर्शन की यात्रा में एक ऐतिहासिक पड़ाव के रूप में देखा जा सकता है. इस समय में दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुंचाने की शुरुआत हुई और इसकी वजह थी 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल. एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि ब्लैक एंड वाइट दिखने वाला दूरदर्शन अब रंगीन हो गया था.
आज की नई पीढ़ी जो प्राइवेट चैनलों के दौर में ही बड़ी हुई है या हो रही है. उसे दूरदर्शन के इस जादू या प्रभाव पर यकीन न हो, पर वास्तविकता यही है कि दूरदर्शन के शुरुआती कार्यक्रमों की लोकप्रियता का मुकाबला आज के तथाकथित चैनल के कार्यक्रम शायद ही कर पाएं. फिर चाहे वो ‘रामायण’ हो, ‘महाभारत’, ‘चित्रहार’ हो या कोई फिल्म, ‘हम लोग’ हो या ‘बुनियाद’, इनके प्रसारण के वक्त जिस तरह लोग टीवी से चिपके रहते थे, वह सचमुच अनोखा था. उस दौर में दूरदर्शन ने पारिवारिक संबंधों को वास्तविक रूप में चरितार्थ करके दिखाया.
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