छतीसगढ़ विधानसभा की आसंदी पर पांचवे विधानसभा अध्यक्ष के रुप में माननीय चरणदास महंत प्रतिष्ठित हो गए. संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे ने परम्परा का निर्वहन करते हुए उनको आसंदी पर बैठाया। महंत जी की एक लंबी दीर्घ कालीन राजनैतिक यात्रा है. उनका अनुभव है पिता स्व. बिसाहु दास महंत जी से मिले राजनितिक संस्कारों को पूरी निष्ठा के साथ चरण दास महंत जी आज तक निभाते आ रहे हैं। वे केन्द्र और राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ विधान सभा के अध्यक्ष होंगे। हम उन्हें शुभ कामनाएं देते हैं। आसंदी की गरिमा, उसकी भूमिका, उसकी श्रेष्ठता एवं पारदर्शिता पर कुछ विचार मैं रखना चाहता हूँ।
वर्तमान में प्रजातंत्र के चार स्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और चौथे स्थान पर पत्रकारिता को माना जाता है। आसंदी की गरिमामयी भूमिका जिससे विधायिका संवैधानिक संसदीय प्रजातान्त्रिक मूल्यों को स्थापित करती है, सम्मानित करती है। एक विचारक के विचार मैं यहां उद्घृत करना चाहता हूं| आसंदी की भूमिका एक साक्षी की भांति होती है।सत्य की भांति होती है। सदन में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष में जन कल्याण, सुव्यवस्थित सर्वमान्य सामाजिक व्यवस्था उसके अधिकार और स्वरूप के क्रियान्वन पर विचार विनिमय होता है। उस विचार मंथन की साक्षी आसंदी होती है। वर्तमान में संसदीय व्यवस्था में बहुमत प्राप्त दल के सदस्यों द्वारा आसंदी का मनोनयन होता है। पक्ष और विपक्ष के सम्मानित सदस्य बड़े सम्मान के साथ संयुक्त रुप से उन्हे आसंदी पर प्रतिष्ठित करते है।
यह छतीसगढ़ राज्य की राजनीति में अविस्मरणीय दस्तावेज बनकर रह जायेगा जहां निवृतमान मुख्यमंत्री आसंदी के प्रस्तावक बने। यह हमारे संवैधानिक व्यवस्था की उच्चता उदारता एवं धवलता का द्योतक है। अब भारतीय संवैधानिक मान्यता को पूज्यता और मान्यता की गंभीरता को समझिए आसंदी पर बैठते ही वह सदस्य सापेक्ष होते हुए भी निरपेक्ष हो जाता है। उनकी भूमिका, उनका चिंतन, उनका निर्णय, निरपेक्ष हो जाता है। वे मौन साक्षी रहकर सदन के अनुशासन को बनाये रखते हुए सत्य के प्रतिपादन की हो जाती है। यह बड़ा चुनौती पूर्ण दायित्व होता है। आदरणीय महंत जी एक सुविज्ञ परिपक्व सुलझे हुए गंभीर विचार के धनी राजविद है। उनमे श्रेष्ठ निर्णय लेने की क्षमता है। वे इस जिम्मेदारी का निसंदेह गरिमामय ढंग से निर्वहन करने में सक्षम है, समर्थ है। उनकी आसंदी में एक स्वस्थ निर्बाध क्षमता है। आसंदी पर राजनैतिक परिदृश्य से हटकर हमारी धवल पूज्य और मान्य परंपराओं की सशक्त भावभूमि से आसंदी की भूमिका को लिखना चाहता हूं।
विधान सभा के माननीय निर्वाचित सदस्य राजनीति के समाज सेवा के साधक की भांति ही होते है। जो एक संकल्प के साथ आते है। जैसे कोई साधक अपनी साधना यात्रा करता है तो वह एक माला ले लेता है। माला में 108 मनके होते है। उसमे एक मनका थोड़ा ऊपर रहता है उसे सुमेरु कहते है। उसमे एक तरफ़ से साधना प्रारंभ होती है।दूसरे तरफ़ वह यात्रा विश्राम लेती है। सुमेरू उस यात्रा का साक्षी होता है वह सत्य का मनका होता है। निरपेक्ष होता है। गंभीर होता है। ठीक आसंदी की तरह। आसंदी माननीय सदस्यों के वैचारिक संतुलन संवाद चातुर्य यथार्थ वादिता की यदि साक्षी होती है तो वह उनके द्वारा भावातिरेक में किए गये संवैधानिक मर्यादाओं के उलंघन की भी साक्षी रहती है। उनमे शालीनता अनुशासन विधि सम्मत व्यवस्था बनाये रखना एक चुनौती पूर्ण दायित्व होता है उसके लिए माननीय महंत जी का चयन एक परिपक्व श्रेष्ठ निर्णय कहा जा सकता है। वे चुनौती पूर्ण इस दायित्व में खरे उतरेंगे इसमे कोई संदेह नही है। सभी मनको सम्मानित सदस्यों का सन्मान करते हुए उनकी भावना का आदर करते हुए बड़े धैर्य और नियंत्रण के साथ सदन के पटल पर सामान्य चर्चा से लेकर उग्र संभाषण पर भी संतुलन बनाने का सामर्थ्य माननीय महंत जी में है।
वे एक सौम्य, सरल, शिष्ट गंभीर विचार के धनी है। इस दृष्टि से महंत जी का व्यक्तित्व सहिष्णुता सम्पन्न है। इसलिए विधानसभा अध्यक्ष का दायित्व उन्हें सौपा गया है । प्रजातान्त्रिक संसदीय व्यवस्था के आस्था केन्द्र में उसकी उच्चता, श्रेष्ठता पारदर्शिता बनाये रखते हुए मानवीय महंत जी का कार्यकाल एक स्मरणीय कार्यकाल होगा। इस अपेक्षा के साथ माननीय महंत जी को बधाई एवं शुभकामनाएं।