बड़वानी/इटारसी। मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचलों में पेयजस संकट गहरा गया है। लोगों को बूंद बूंद पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। कही झिरिया से तो कही सुखी नदी में गड्ढे खोदकर पाने लायक पानी निकालकर काम चला रहे हैं।
समीर शेख, बड़वानी। प्रदेश के पशुपालन मंत्री के विधानसभा क्षेत्र के गांवो में पानी के लिए संघर्ष करते लोगों की ऐसी तस्वीर दिखाने जा रहे हैं, जो आपको हैरान भी कर देगी और आपको सोचने को मजबूर भी कर देगी। आजादी के इतने बीत जाने के बाद भी कई सरकारों के दावों को खोखला साबित कर देगी कुछ ऐसे गांव की तस्वीरें, जहां पर पानी के लिए 2 से 3 किलोमीटर का मुश्किलों भरा सफर करना पड़ता है। उसके बाद भी पानी नाले या झिरी से भरना पड़ता है। ना सिर्फ महिलाएं बल्कि गधे और खच्चर के माध्यम से भी लोग यहां पानी भरते हैं। लोगों का दावा है कि कई बार आवेदन दिया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। समस्या जस की तस बनी हुई है।
बड़वानी जिले का आदिवासी पाटी क्षेत्र ऐसा है जहां सरकार का विकास रुक गया है। या यूं कह सकते हैं कि सरकारों के बड़े-बड़े दावे यहां देखने पर खोखले साबित होते हैं। दरअसल पाटी विकासखंड के गोलगांव खेरवानी, सेमलेट गांव के कई फलियों में पानी के लिए लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ता है। पानी की व्यवस्था नहीं होने के चलते यह लोग 2 से 3 किलोमीटर दूर पानी लेने जाते हैं। वह भी किसी नाले से या झिरी से जहां डब्बे के माध्यम से पानी भरना पड़ता है। यहां पानी की शुद्धता तो दूर की बात है लेकिन लोगों को पानी मिल जाए यह बहुत बड़ी बात है। गांव की महिलाएं अपने सिर पर पानी के बर्तन लेकर पहाड़ी रास्ता कई घंटों में पूरा होता है।
गांव में जिन लोगों के पास गधे और खच्चर है। वे लोग जानवर के माध्यम से पानी लेकर आते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि गर्मी में जानवर भी पानी के लिए परेशान होते हैं। विधायक को भी समस्या से अवगत कराया। कलेक्ट्रेट तक जाकर समस्या बताई लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता। एसडीएम घनश्याम धनगर से बात की तो उन्होंने कहा पीएचई ओर संबंधित पंचायत से मामले की जांच कराएंगे। आवश्यक हुआ तो वहां पेयजल के लिए नलकूप खनन करवाएंगे।
इंद्रपाल सिंह, इटारसी। नर्मदापुरम के सबसे बड़े आदिवासी ब्लॉक केसला इटारसी में ग्रामीण पानी की समस्या से परेशान है। केसला गांव का एक आदिवासी क्षेत्र गोमतीपूरा में सुखी नदी में गड्ढा खोदकर पीने का पानी निकालते है या एक किलोमीटर की दूरी तय कर पानी लाते है। एक एक बूंद को तरसते आदिवासी ग्रामीणों ने स्थानीय अधिकारियों के साथ नेताओं तक गुहार लगा चुके है, लेकिन आज तक इनकी सुध किसी ने नहीं ली।
खेत के आड़े तिरछे रास्तों से गुजरकर आदिवासी ग्रामीण सुखी नदी में गड्ढा खोदकर पानी की व्यवस्था करते है।
हालांकि गर्मी में नदी पूरी तरह सूख चुकी है। गोमतीपूरा में करीब 10 आदिवासी परिवार के मकान है। वहां पर पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। वर्षों से यह परिवार गर्मी में सुखी नदी में गड्ढा खोदकर पानी की व्यवस्था कर रहे है। सरकार आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं देने की बात करती है,लेकिन दूसरी तरफ वे एक एक बूंद को तरसते नजर आ रहे है।
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