नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 अस्थायी शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति का विषय राष्ट्रपति के सामने पहुंच गया है. विश्वविद्यालय के लगभग 10 हजार शिक्षकों ने इस संबंध में राष्ट्रपति के समक्ष अपनी बात रखी है. डूटा के नेतृत्व में 10 हजार से अधिक शिक्षकों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी. दिल्ली विश्वविद्यालय के लगभग 4500 तदर्थ (adhoc teacher) और अस्थायी सहायक शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति को लेकर राष्ट्रपति से गुहार लगाई गई है. इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार भागी के नेतृत्व में इन शिक्षकों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर राष्ट्रपति से गुहार लगाई है. गौरतलब है कि राष्ट्रपति दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर भी हैं.
सालों से कार्यरत हैं अस्थायी शिक्षक, राष्ट्रपति से स्थायी करने की गुहार
डूटा ने इस विषय में अब सीधे तौर पर राष्ट्रपति से ही हस्तक्षेप कर हजारों शिक्षकों और उनसे संबंध परिवारों के लिए राहत की मांग की है. डूटा अध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार भागी ने बताया कि समाधान के लिए समायोजन क्यों जरूरी है. उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के लगभग 4500 अडहॉक और अस्थायी सहायक प्रोफेसर नौकरी और सामाजिक असुरक्षा के बीच विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों और विभागों में लंबे समय से काम कर रहे हैं. ये शिक्षक पूर्णकालिक, स्वीकृत एवं मौलिक पदों पर अडहॉक और अस्थायी आधार पर कार्यरत हैं. ऐसे में जब इनके पात्रता के मानदंड समान हैं, तो खाली पदों पर सालों से कार्यरत इन शिक्षकों को ही क्यों न समायोजित किए जाने की दिशा में बढ़ा जाए.
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दिल्ली विश्वविद्यालय में सभी श्रेणियों के स्थायी, अस्थायी और तदर्थ सहायक आचार्यों की पात्रता मानदंड समान हैं. तदर्थ आधार पर काम करने वाले सहायक आचार्यों को शुरू में दिल्ली विश्वविद्यालय एग्जीक्यूटिव काउंसिल के संकल्प के अनुसार 4 महीने (यानी 120 दिन) के लिए नियुक्त किया जाता है. इन पदों पर जो काम करते हैं, आमतौर पर वे पद स्थायी स्वीकृति के होते हैं. स्थायी शिक्षकों की तुलना में अस्थायी शिक्षकों की सेवा और कार्य स्थितियों में उल्लेखनीय अंतर है. इन शिक्षकों के साथ निरंतर स्थायी नहीं हो पाने के कारण भेदभाव होता है और वे लंबे समय तक सेवाएं देने और शैक्षिणक उपलब्धियों के बावजूद सहायक शिक्षक बने रहने के लिए मजबूर हैं.
अडहॉक लेक्चरर्स को स्थायी करने की मांग
अस्थायी आधार पर काम करने वाले योग्य प्रतिभाशाली शिक्षकों ने विश्वविद्यालय को समय दिया है, नियमित अंतराल पर प्रक्रिया के माध्यम से स्थायी नौकरी पाने के विश्वास और आशावाद के साथ विश्वविद्यालय में वे शामिल हुए थे. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को समृद्ध करने के लिए विश्वविद्यालय और कॉलेजों के अनुसंधान और शिक्षाविदों, सह-पाठ्यचर्या गतिविधियों और विश्वविद्यालय व कॉलेज के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान को कोई भी नकार नहीं सकता है. डूटा के मुताबिक, विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रशासन की ओर से इच्छाशक्ति और कार्रवाई में लापरवाह रवैये के कारण से उन्हें वर्षों से अस्थायी आधार पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता रहा है. इसी का परिणाम है जिसके चलते पिछले कई वर्षों में पूरी विश्वविद्यालय प्रणाली तदर्थवाद की ओर चली गई है.
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डूटा का कहना है कि डीयू ने इन शिक्षकों को गरिमा और तनावमुक्त जीवन के साथ काम करने के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया है. अस्थायी शिक्षकों की आजीविका हमेशा खतरे में रहती है. ये शिक्षक वार्षिक वेतन वृद्धि, पदोन्नति, चिकित्सा लाभ, अवकाश आदि जैसे सभी उचित लाभों से वंचित हैं. महिला सहकर्मियों को लंबे समय तक मातृत्व और बाल देखभाल अवकाश प्राप्त करने के उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया है. डूटा अध्यक्ष ने बताया कि 2010 के बाद से ओबीसी विस्तार के कारण रिक्तियों की बढ़ी हुई संख्या को भरने के लिए विश्वविद्यालय और कॉलेजों में स्थायी नियुक्तियों के लिए कोई बड़ा अभियान नहीं चला है. विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेजों ने 2013, 2015, 2017 और 2019 में शिक्षण पदों का विज्ञापन किया था, लेकिन यह अधिकांश विभागों और कॉलेजों में साक्षात्कार आयोजित करने में विफल रहा.
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