अनिल सक्सेना, रायसेन। कोरोना संक्रमण रोकने लगाए गए लॉकडाउन ने मध्यम वर्गीय परिवार की आर्थिक कमर तोड़ कर रख दी है. ग्रामीणों क्षेत्रों के पंचशिल्पी में गिने जाने वाले कुम्हारों समाज के समक्ष रोजी रोटी की समस्या आ खड़ी हुई है. मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाने वाले कुम्हारों को भूखों मरने की स्थिति आ गई है. उन्हें इस महामारी और कोरोना कर्फ्यू की वजह से दोहरी मार पड़ रही है. पिछले साल भी गर्मी में कोरोना संक्रमण रोकने लॅाकडाउन लगा था, इस बार कोरोना कर्फ्यू से यही स्थिति निर्मित है. वहीं कोरोना संक्रमण रोकने अधितकर लोगों ने ठंडा पानी पीना छोड़ दिया है जिससे मटके नहीं बिक रहे हैं. पीढिय़ों से इस हुनर को जीवित रखने वालों को अब इस व्यवसाय को बंद करने पर विवश कर रहा है.

परिस्थितियां उनके विपरीत

कुछ इस तरह की परेशानी जिले के अंतिम छोर पर स्थित अम्बाडी ग्राम पंचायत मुख्यालय में देखने को मिली. जहां कुम्हार अपनी आजीविका चलाने के लिए चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाकर इस हुनर को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन परिस्थितियां उनके विपरीत है.

कोरोना महामारी के चलते लोगों में ठंडे पानी को लेकर भी दहशत

बता दें कि कोरोना महामारी के चलते लोगों में ठंडे पानी को लेकर भी दहशत है. लोग ठंडे पानी की जगह गरम पानी पी रहे और ठंडे से परहेज कर रहे हैं. यही वजह है कि कुम्हारों के मिट्टी के बर्तन मटके नहीं बिक रहे हैं. कुम्हार परिवारों ने गर्मी के पहले मटकों और सुराही का निर्माण शुरू कर दिया था. गर्मी शुरू होते ही बिक्री होने लगती थी. इस बार ऐसा हो नहीं सका. अम्बाडी ग्राम के मलखान प्रजापति, घासीराम, शांति बाई आदि ने बताया कि कोरोना महामारी ने घर की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है. इसके चलते हम लोग अपने बनाए हुए मटकों को बेच नहीं पा रहे है. बाजार बंद है और हम लोग घरों में ही कैद हैं. मटका बिकना भी मुश्किल हो गया है. जो मटके पहले से बने हैं वह भी घर में ही जाम है. जिस बाजार में हमेशा मटके बेचने जाते थे वे भी बंद है.

रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा

बता दें कि कोरोना कर्फ्यू ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. बर्तनों की बिक्री नहीं हो रही है. महीनों की मेहनत घर के बाहर रखी है. इन हालात में परिवार का गुजर करना भी मुश्किल हो गया है. गर्मी के सीजन को देखते हुए बर्तन बनाने वालों ने बड़ी संख्या में मटके बनाए, लेकिन बिक नहीं रहे हैं. दरअसल आज भी ऐसे लोग हैं जो मटके के पानी को प्राथमिकता देते हैं. मगर इस बार तो इनकों घाटा हो गया. सबसे बड़ी समस्या परिवार चलाने की है. कोई भी मटके खरीदने नहीं आ रहे है. ऐसे में इन मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों पर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है.