रायपुर। नदिया प्रदूषित हो चुकी है. तालाब भी प्रदूषण की चपेट में हैं. बारिश भी कम होती है. क्रांकिट के जंगल में पेड़ों की कमी हो चुकी है.  रेतों की कमाई नदियों की छाती छल्ली-छल्ली हो गई है. नदियों के जख्मों में सीमेंटीकरण का काम नमक छिड़कने जैसा है. सुखती-मरती नदियों को बचाने के मुहिम चल रहे हैं. एनजीटी सख्त है. इसी सख्ती का नतीजा ये तस्वीर है-

तस्वीर को देखने के बाद कुछ तो समझ गए होंगे.  जैसा अब देखते रहे हैं वैसा अब विसर्जन राजधानी के भीतर होता नहीं है. वजह ऊपर बता ही चुके हैं. चलिए अब जो हो रहा उसको विस्तार से बता देते हैं.  तस्वीर में जो देख रहे हैं वो विसर्जन कुंड है. खारुन नदीं के तट पर बनाया गया विसर्जन कुंड. कुंड की चौढ़ाई और लंबाई 50 से 100 फीट के करीब है, लेकिन गहराई महज 8 से 10 फीट.  गहराई बहुत कम होने के चलते विराट स्वरूप वाली दुर्गा मां की 15 से 20 फीट ऊंची प्रतिमाएं कुंड में डूब नहीं पाती है.

इसमें प्रशासन का कोई दोष नहीं है. लेकिन जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की फिर भी है. कैसे वो भी बताएंगे, लेकिन यह जानना जरूरी है कि 8 से 10 फीट गहरे कुंड प्रतिमाएं क्यों नहीं डूब रही है.  इसलिए क्योंकि हमारी भक्ति और आस्था आज पहले से कहीं ज्यादा प्रबल और खर्चीला हो चला है. लाखों खर्च कर अब विशाल प्रतिमाएं बनवाई जाती है. जबकि ये पता है कि प्रकृति को पहले हद से ज्यादा नुकसान हम हर स्तर पहुंचा चुके हैं. लेकिन फिर भी प्रतिमाएं विराट स्वरूप वाली बनवाई जा रही है, बैठाई जा रही है. ये जानते हुए कि बड़े प्रतिमाओं को विसर्जित करने की व्यवस्था कृत्रिम रूप में भी नहीं बन पा रही है. एक और तस्वीर देखिए-


इस तस्वीर को देखकर ये तो समझ ही गए होंगे कि ये विसर्जित हो चुकी दुर्गा मां की प्रतिमा है. लेकिन  प्रतिमा की स्थिति फिर भी ऐसी है कि अगर इसे खड़ा कर दोबारा बनाया जाए तो वापस उसी रूप में मां दिखाई देने लगी. खैर तस्वीर में जरा इन गायों को देखिए.  ये भूखीं गायें प्रतिमा में इस्तेमाल किए गए पैरा को खा रही है. इसमें दो चीजे एक तो गायों के खाने के लिए शहर के भीतर चारा नहीं और दूसरी ये कि प्रतिमा डूबने के बाद भी डूबी नहीं है पैरा अभी भी चारे के रूप में मौजूद है.

अब वो बाते जो मैंने खबर कवर करने के दौरान लोगों को आपस बतियाते हुई सुनी. स्थानीय लोग जो कुंड में प्रतिमाएं विसर्जित होते हुए देख रहे हैं तो उनका कहना था कि ऐसा तो हमने कभी देखा ही नहीं था.  इस तरह से प्रतिमाओं का विसर्जन कहां होता है.  कुंड की तरह तालाब में भी प्रतिमाएं विसर्जित होती है तो उसे विधिवत रूप से डूबाया जाता है, लेकिन यहां तो प्रतिमाओं को धक्का देकर नीचे गिरा दिया जा रहा है. उनका ये भी कहना था जब क्रेन से प्रतिमाएं उठाई जा रही हैं, तो उसे क्रेन से कुंड में नीचे डूबा दिया जाता.  लोगों की बातें सही थी या नहीं पर तर्कपूर्ण तो थी.