रायपुर- महासमुंद जिले के सरायपाली विकासखण्ड के ग्राम कोसमपाली के किसान डमरूधर को अपनी बेटियों की आगे की पढ़ाई की चिंताए अब दूर हो गई हैं। आज बोनस तिहार  में मिली 35 हजार की बोनस राशि से वह अपनी दोनों बेटियों- जया और प्रेमलता की नर्सिग की पढ़ाई की फीस आसानी से अदा कर पाएंगे। दरअसल डमरूधर ने अपनी दोनों बेटियों को नर्सिंग के जीएनएम कोर्स की पढ़ाई के लिए इस साल राजधानी रायपुर के एक निजी नर्सिंग कॉलेज में दाखिला दिलाया है। सामान्य स्नातक के बदले स्वरोजगार की अधिक संभावना के चलते उन्होंने अपनी बेटियों के सुखद भविष्य के लिए यह फैसला लिया है।

 

डमरूधर लगभग 10 एकड़ कृषि भूमि के मालिक हैं। पिछले साल उन्होंने लगभग 115 क्विंटल धान समर्थन मूल्य पर सहकारी समिति रिसेकला में बेचा था। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति रिसेकेला में उन्होंने सादा सरना और सिल्की किस्म की धान का विक्रय किया था। आज उनके खाते में बोनस के 35 हजार रूपए आ गए।  अपनी बेटियों के नर्सिंग पाठ्यक्रम में दाखिले के दौरान लगभग 30 हजार रुपए की रकम उन्होंने प्रथम किश्त के रूप में जमा कराई है। दूसरे किश्त उन्हें इस माह अदा करनी हैं। तमाम बचत खेती-किसानी के काम में लग जाने की वजह से पैसे का इंतजाम़ नहीं हो पा रहे थे। वैसे भी सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में किसानों की माली हालत पतली हो जाती है। इस बीच मुख्यमंत्री द्वारा धान का बोनस दिए जाने की घोषणा उनके लिए राहत लेकर आई और इधर-उधर से पैसे की जुगाड़ करने की उनकी तमाम चिंताएं दूर हो गई।

डमरूधर का कहना है कि उन्हें बोनस की उम्मीद तो नहीं थी लेकिन डॉ. रमन सिंह की सरकार ने सूखे की हालात को देखते हुए किसानों के हित में जो फैसला लिया, इसका हजारों किसानों के साथ उन्हें भी फायदा मिला है। डमरूधर राज्य सरकार के बोनस दिए जाने के निर्णय से खुश हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए इधर-उधर से अब ऋण लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यही नहीं बल्कि अगले बरस भी बोनस दिए जाने की घोषणा ने हम जैसे ठेठ किसानों का मनोबल बढ़ा है। ज्यादा उत्साह के साथ अब हम खेती-किसानी कर पाएंगे। उन्होंने बताया कि उन्होंने किसान समृद्धि योजना के अंतर्गत अपने खेत में नलकूप भी लगाए हैं। राज्य सरकार की फ्लेट रेट विकल्प योजना के अंतर्गत प्रति महीने 300 रुपए का बिजली बिल वे अदा करते है। इससे भी काफी राहत मिली है। कोसमपाली गांव महासमुंद जिले की रायगढ़ की सीमा से लगा आदिवासी बहुल गांव है। कंवर, बिंझवार और खडि़या जनजाति समूह के आदिवासी इस गांव में बहुतायत से निवास करते हैं। लगभग 45 कृषि नलकूप गांव में चल रहे हैं। इनमें 35 नलकूप तो उन आदिवासी किसानों के हैं, जिनका बिल राज्य सरकार अदा करती है। आज से एक दशक पहले गांव में केवल 5-7 नलकूप हुआ करते थे। राज्य सरकार की किसान हितैषी नीति और अनुदान के चलते यह सब संभव हो पाया है और गांव में समृद्धि और खुशहाली आई है।