दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने एक आरोपी की कथित अवैध हिरासत के मामले में पुलिस कमिश्नर को जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि बिना एफआईआर के किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान के मूल अधिकारों के आर्टिकल 21 के तहत संरक्षित है.
द्वारका कोर्ट के विशेष जज मनु गोयल ने उत्तम नगर थाने द्वारा गिरफ्तार किए गए आरोपी कृष्णा की जमानत याचिका पर सुनवाई की. यह घटना 6 जुलाई की है, जबकि एफआईआर 8 जुलाई को दर्ज की गई थी. सीसीटीवी फुटेज से यह स्पष्ट हुआ कि आरोपी को 7-8 जुलाई की मध्य रात्रि 12:30 बजे उनके घर से उठाया गया था.
कोर्ट ने जांच अधिकारी को लगाई फटकार
दिल्ली पुलिस ने अदालत में बताया कि कृष्ण को प्रारंभिक पूछताछ के बाद रिहा कर दिया गया था. हालांकि, जब अदालत ने रात के समय अचानक पूछताछ की आवश्यकता के बारे में सवाल किया, तो जांच अधिकारी और कानून व्यवस्था निरीक्षक इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके.
पुलिस यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि कृष्ना को थाने से कब रिहा किया गया. अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि कृष्ना को फिर से दर्ज होने से पहले अवैध रूप से हिरासत में लिया गया, जो कि एक गैरकानूनी और असंवैधानिक कार्य है.
कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर से मांगी जांच रिपोर्ट
द्वारका कोर्ट ने इस मामले में एसएचओ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने न तो कोई आंतरिक जांच की और न ही अपनी रिपोर्ट में उन चार या पांच पुलिसकर्मियों के नाम बताए, जिनमें एक महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थी, जिसने आरोपी को गिरफ्तार किया था.
द्वारका कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि पुलिस कमिश्नर इस मामले की स्वयं जांच करें और 5 अगस्त तक जॉइंट पुलिस कमिश्नर स्तर के अधिकारी के माध्यम से रिपोर्ट प्रस्तुत करें. इसके साथ ही, कोर्ट ने आरोपी कृष्ण को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत भी दे दी.
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