अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्य प्रदेश के मऊगंज जिले से शिक्षा विभाग की एक ऐसी करतूत सामने आई है, जिसने न सिर्फ़ प्रशासनिक व्यवस्था पर कालिख पोती है, बल्कि मानवीय संवेदनशीलता को भी तार-तार कर दिया है। जहाँ प्रदेश में डिजिटल इंडिया की दुहाई दी जा रही है, वहीं रीवा का शिक्षा विभाग दिखा रहा है कि उनके लिए तकनीक केवल एक मज़ाक है! विभाग ने ई-अटेंडेंस न लगाने वाले शिक्षकों को नोटिस जारी किए, लेकिन इस ‘सख्त’ कार्रवाई में जो खुलासा हुआ, वह बेहद शर्मनाक है। शिक्षा विभाग के अधिकारी इतने ‘जागरूक’ हैं कि उन्होंने उन तीन दिवंगत शिक्षकों को भी नोटिस भेज दिया, जिनकी मृत्यु हुए साल और कई महीनों बीत चुके हैं।
आखिर में क्या मज़ाक चल रहा है?
मृत शिक्षकों (देवतादीन कोल, छोटेलाल साकेत, और रामगरीब दीपांकर) से पूछा जा रहा है कि आप हाजिरी क्यों नहीं लगा रहे? और हाँ, चेतावनी यह भी दी गई है कि जवाब नहीं दिया तो वेतन काट लिया जाएगा! अब सवाल यह है कि अगर ये शिक्षक विभाग के पोर्टल पर ‘जीवित’ थे, तो क्या इनके नाम पर अभी तक वेतन का भुगतान हो रहा था? यह कोई लिपिकीय त्रुटि नहीं, बल्कि गंभीर प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अक्षम्यता का जीता-जागता प्रमाण है। शिक्षा विभाग की इस घोर लापरवाही पर पर्दा डालना मुश्किल है।
प्रदेश के शिक्षा विभाग के द्वारा सख्ती दिखाने का प्रयास किया गया और ई-अटेंडेंस न लगाने वाले 1500 से अधिक शिक्षकों को ताबड़तोड़ नोटिस जारी कर दिए गए। लेकिन शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड्स की पोल खुल गई! ज़िला शिक्षा अधिकारी रीवा/ मऊगंज द्वारा जारी नोटिस की सूची में ऐसे शिक्षकों के नाम थे, जो इस दुनिया में हैं ही नहीं। फिर इन शिक्षकों का नाम लिस्ट में कहा से आया।
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जिन शिक्षकों की मृत्यु के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र तक बन चुके हैं, वे आज भी विभाग के पोर्टल पर ‘सक्रिय शिक्षक’ बने हुए हैं। यह साफ़ दिखाता है कि विभाग के कर्मचारी कितने संवेदनहीन और लापरवाह हैं कि उन्होंने सालों तक डेटा को अपडेट करने की ज़हमत तक नहीं उठाई।
सबसे बड़ा सवाल उठता है प्रक्रिया पर, कि शिक्षा विभाग ने बिना दस्तावेजों का गहन परीक्षण किए ही यह नोटिस सूची क्यों तैयार की? इस त्रुटिपूर्ण नोट-शीट को किस अधिकारी ने तैयार किया और किस अधिकारी ने इसे आगे कलेक्टर तक पहुंचाया ? क्योंकि यह फाइल स्वयं शिक्षा विभाग द्वारा मऊगंज कलेक्टर के अनुमोदन हेतु भेजी गई थी। चूंकि अनुमोदन विभागीय नोटिंग और प्रस्तावों के आधार पर ही होता है, जिससे यह स्पष्ट है कि शिक्षा विभाग ने दस्तावेजों के सत्यापन में न सिर्फ़ अक्षमता दिखाई, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की सारी हदें पार कर दीं।
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यह मामला केवल ‘हाजिरी’ का नहीं, बल्कि वित्तीय अनुशासन और प्रशासनिक जवाबदेही का है। क्या मृत शिक्षकों के नाम पर कोई और खेल चल रहा था? शिक्षा विभाग के जिन ज़िम्मेदारों ने यह फाइल तैयार की, उन पर क्या कार्रवाई होगी? या हमेशा की तरह इसे ‘छोटी-सी त्रुटि’ कहकर फ़ाइल बंद कर दी जाएगी?
शिक्षा विभाग के अधिकारियों में इस घटना से भले ही हड़कंप मचा हो, लेकिन उनका इसे ‘विभागीय त्रुटि’ मानकर पल्ला झाड़ना दिखाता है कि वे अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। मऊगंज के शिक्षा विभाग की यह ‘शर्मनाक’ कार्यशैली जांच का विषय है। यह मामला दिखाता है कि शिक्षा विभाग में रिकॉर्ड मेंटेनेंस की स्थिति कितनी दयनीय है। मृत शिक्षकों को नोटिस जारी कर उनका अपमान किया गया है। आखिर इन नोटिसों का जवाब कौन देगा? उनकी विधवा या उनके परिवार वाले?
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