सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) को खारिज कर दिया जिसमें देशभर में 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (E20) की बिक्री पर सवाल उठाया गया था. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इसमें हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है.

फ्यूल का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा रहा..

याचिका में आरोप लगाया गया था कि लाखों मोटर चालकों को ऐसे फ्यूल का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो उनकी गाड़ियों के लिए डिजाइन नहीं किया गया है. याचिकाकर्ता ने कई निर्देशों की मांग की थी, जिनमें प्रमुख रूप से पेट्रोल पंप पर एथेनॉल-फ्री पेट्रोल उपलब्ध कराने, सभी पंप और डिस्पेंसिंग यूनिट्स पर स्पष्ट लेबल लगाने, उपभोक्ताओं को उनके वाहन की फ्यूल-कंपैटिबिलिटी की जानकारी देने और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 के तहत उचित एडवाइजरी जारी करने की मांग शामिल थी.

साथ ही याचिका में यह भी मांग की गई थी कि सरकार देशभर में एक स्टडी कराए जिससे यह पता चल सके कि E20 फ्यूल से नॉन-कंपैटिबल गाड़ियों में कितनी मैकेनिकल डिग्रेडेशन और एफिशिएंसी लॉस हो रहा है.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से क्या कहा?

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट शादन फरासत ने कोर्ट से कहा कि बिना किसी नोटिस या अधिसूचना के केवल E20 फ्यूल उपलब्ध कराया जा रहा है. उन्होंने साफ किया कि याचिकाकर्ता E20 को हटाने की मांग नहीं कर रहा, बल्कि उपभोक्ताओं को विकल्प देने की अपील कर रहा है.

केंद्र सरकार ने क्या प्रतिक्रिया दी?

इस पर अटॉर्नी जनरल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सरकार ने सभी पहलुओं पर विचार किया है. उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या कोई बाहर से आकर तय करेगा कि भारत में कौन सा पेट्रोल इस्तेमाल होगा?” उन्होंने यह भी कहा कि एथेनॉल ब्लेंडिंग से गन्ना किसानों को बड़ा लाभ मिला है और इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग सही नहीं है. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस पर और कोई आदेश देने की आवश्यकता नहीं है.

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