पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर उठे विवाद ने बड़ा मोड़ ले लिया है। गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनाव आयोग के फैसलों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। ADR ने आयोग द्वारा आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को SIR के लिए अकेले वैध पहचान पत्र न मानने को ‘हास्यास्पद’ और ‘असंगत’ करार दिया है।
क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट ने भी 10 जुलाई को इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा था कि जब यही दस्तावेज जाति प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र जैसे प्रमाणों के लिए मान्य हैं, तो SIR प्रक्रिया में इन्हें क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता। जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि इन दस्तावेजों में फर्जीवाड़े की संभावना ज्यादा है।
फर्जी तरीके से हासिल किया जा सकता
ADR ने आयोग की इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों में से कोई भी फर्जी तरीके से हासिल किया जा सकता है। इसके अलावा उसने दावा किया कि 2011 से 2025 तक 13.89 करोड़ निवास प्रमाणपत्र और 8.72 करोड़ जाति प्रमाणपत्र जारी हुए हैं, जबकि बिहार की कुल आबादी ही करीब 13 करोड़ है।
अमान्य बताना तर्कहीन
NGO ने तर्क दिया कि जब आधार से ये दस्तावेज बन सकते हैं, तो आधार को ही अमान्य बताना तर्कहीन है। साथ ही यह भी कहा कि आयोग ने दावा किया कि सभी राजनीतिक दल SIR के साथ हैं, जबकि किसी भी दल ने ऐसी मांग नहीं की थी। उल्टे विपक्ष ने फर्जी वोटरों के जोड़े जाने और असली वोटरों के नाम हटाए जाने पर चिंता जताई थी।
चुनाव नवंबर 2025 में संभावित
ADR ने अदालत को चेताया कि जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से गायब रहेंगे, उनके पास नाम जुड़वाने या अपील करने का समय ही नहीं रहेगा, जबकि चुनाव नवंबर 2025 में संभावित हैं।
फैसले पर सबकी निगाहें टिकी
अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह विवाद ना सिर्फ SIR की वैधता, बल्कि लाखों मतदाताओं के अधिकारों का भी भविष्य तय करेगा।
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