कवर्धा। जिले के भोरमदेव अभ्यारण की सीमाओं के दस किलोमीटर के भीतर आने वाले भूमि को इको सेंसिटिव जोन अर्थात पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र के रूप में संरक्षित किया जाएगा. इको सेंसिटिव जोन का उदे्श्य केवल पर्यावरण वन्य प्राणी और जैव विविधता के लिए गतिविधियों को विनियमित करना है. 9 अक्टूबर 2023 को भारत के राजपत्र क्र. 4210 से भोरमदेव अभ्यारण्य के लिए भी सीमा से लगे क्षेत्रों को ईएसजेड की घोषित करने के लिए प्रारूप अधिसूचना जारी किया गया हैं. इसका विस्तार 0 से लेकर 8.3 किमी तक है. Read More – CG TRANSFER BREAKING : कलेक्टर के बाद बड़े पैमाने पर डिप्टी कलेक्टरों का तबादला, देखें लिस्ट…
जनसाधारण को प्रकाशन की तिथि से 60 दिवस की अवधि आपत्ति या सुझाव के लिए दी गई है. ईएसजेड क्षेत्र के अन्दर आने वाली भूमि पर ग्रामीणों की ओर से वर्तमान में की जा रही गतिविधियों पर किसी प्रकार का प्रभाव इस अधिसूचना से नहीं पड़ने जा रहा है. ईएसजेड का उद्देश्य केवल पर्यावरण वन्यप्राणी और जैवविविधता के संरक्षण के लिए गतिविधियों को विनियमित करना है, जिससे कि अभ्यारण्य के जैवविविधिता का संरक्षण और संवर्धन अबाध गति से होती रहे.
सुप्रीम कोर्ट और एमओईएफसीसी के निर्देशों का पालन करते हुए ईएसजेड के लिए प्रस्ताव तैयार कर भारत सरकार को प्रेषित किया गया था. भारत सरकार की ओर से प्रारूप अधिसूचना 9 अक्टूबर 2023 को प्रकाशित किया गया. इस अधिसूचना में 24 ग्रामों को ईएसजेड के अंतर्गत लिया गया है. इससे जनसाधारण में यह भ्रांति फैल गई कि भोरमदेव अभ्यारण्य को टायगर रिजर्व घोषित करने के लिए इस प्रकार की अधिसूचना जारी की गई है. यह भ्रांति पूर्णतः असत्य है. भोरमदेव अभ्यारण्य को टायगर रिजर्व बनाने के लिए वन विभाग छत्तीसगढ़ शासन की ओर से किसी भी प्रकार का प्रस्ताव वर्तमान में नहीं भेजा गया है और न ही प्रस्ताव तैयार करने की कोई योजना है. इसी प्रकार ईएसजेड की अधिसूचना में किसी भी ग्राम को विस्थापित करने का कोई प्रावधान नहीं है और न ही यह टायगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया है.
वन मंडल अधिकारी चूड़ामणि सिंह ने बताया कि पारिस्थितिकी संवेदी जोन (ईएसजेड) से तात्पर्य यह है कि पर्यावरण और जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एक ऐसा क्षेत्र जहां विभिन्न गतिविधियों के प्रतिषिद्ध या विनियमित (रेगूलेटड) किया जा सके. जैसे कि वाणिज्यिक खनन, प्रदूषण उत्पन्न करने वाले उद्योग, ईंट भट्टों की स्थापना, आरामिल स्थापना, ठोस अपशिष्ट निपटान स्थल आदि गतिविधि प्रतिषिद्ध है. रिसार्ट की स्थापना, संनिर्माण आदि गतिविधि विनियमित रहेगी, जबकि वर्षा जलसंचय कौशल विकास, जैविक खेती आदि गतिविधि की अनुमति रहती है. ईएसजेड क्षेत्र में केवल गतिविधियों को विनियमित किया जाता है. ईएसजेड घोषित होने पर अभ्यारण्य के सीमाओं में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है.
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) का राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्य की सीमाओं के 10 किलोमीटर के भीतर आने वाली भूमि को इको सेंसिटिव जोन या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेर्ड) घोषित किया जाए.
वन मंडल अधिकारी सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने विभिन्न निर्णयों आईए नं. 1000 ऑफ 2003, आईए नं. 1512 ऑफ 2006, आईएनं. 1992 ऑफ 2007 आदि में एमओईएफसीसी के निर्देशों का समर्थन किया है. साथ ही सभी राज्यों को निर्देशित किया कि सभी राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यप्राणी अभ्यारण्य की सीमाओं से लगे क्षेत्र को ईएसजेड के रूप में नोटिफाईड करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर प्रेषित करें. सुप्रीम कोर्ट की ओर से वन, वन्यप्राणी और पर्यावरण के संरक्षण के लिए अभ्यारण्य की सीमा से लगे 10 किलोमीटर तक के क्षेत्र को ईएसजेड बनाने के लिए निर्देशित किया गया है. राज्य अपने क्षेत्र की उपयुक्तता के आधार पर ईएसजेड की सीमा को 10 किलोमीटर से बढ़ा या घटा सकते हैं.
भोरमदेव अभ्यारण्य 2001 में अधिसूचित हुआ और 2007 में इसका विस्तार किया गया. इसका नामकरण छत्तीसगढ़ पुरात्तविक, धार्मिक एवं पर्यटन महत्व के ऐतिहासिक महत्व के स्थल भोरमदेव मंदिर के नाम पर किया गया है. अभ्यारण्य क्षेत्र का विस्तार 352 वर्ग किमी क्षेत्रफल में है. इसका कोर क्षेत्र 160 वर्ग किमी और बफर क्षेत्र 192 किमी है. भोरमदेव अभ्यारण्य क्षेत्र में कुल 29 गांव बसे हुए हैं. भोरमदेव अभ्यारण्य में मुख्य रूप से तेन्दुआ, भालू, लकड़बग्घा, नीलगाय, जंगली कुत्ता, गौर, भेड़िया, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, चीतल, कोटरी, सांभर, लंगूर, नेवला, खरगोश, मोर, जंगली मुर्गा, उल्लू आदि विविध प्रकार के वन्यप्राणी मौजूद है. भोरमदेव अभ्यारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार टायगर रिजर्व के बीच एक वन्यप्राणी गलियारा के रूप में स्थित है. वन्यप्राणी कान्हा से अचानकमार तक भोरमदेव अभ्यारण्य से होते हुए विचरण करते हैं.
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