दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi- High Cout) ने रेहड़ी-पटरी (hawkers )और फेरीवालों के समर्थन में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें नगर निगम को उन्हें उजाड़ने के बजाय विस्थापित करने का निर्देश दिया गया है. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि रेहड़ी-पटरी गरीबों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग बड़े दुकानों या मॉल में खरीदारी करने की स्थिति में नहीं है.

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न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने तीन फेरीवालों की याचिका पर सुनवाई की. याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय देते हुए, पीठ ने नगर निगम को निर्देशित किया कि इन फेरीवालों को उजाड़ने के बजाय उन्हें वैकल्पिक स्थान पर दुकान लगाने की सुविधा प्रदान की जाए. पीठ का मानना था कि दिल्ली जैसे महंगे शहर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए ये फेरीवाले एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं, जहां लोग मोल-भाव कर अपनी आवश्यकताएं पूरी कर सकते हैं. इसके अलावा, पीठ ने यह भी स्वीकार किया कि राजधानी की आधी से अधिक जनसंख्या बड़े मॉल या दुकानों से खरीदारी करने की स्थिति में नहीं है, और इसलिए निगम को चाहिए कि वह एक उचित नीति बनाकर छोटे दुकानदारों को स्थान उपलब्ध कराए.

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पीठ के समक्ष निगम की वकील ने 10 जुलाई तक याचिकाकर्ताओं को दुकान लगाने के लिए स्थान देने का निर्देश देने की मांग की. उन्होंने बताया कि माता सुंदरी रोड पर निवासियों द्वारा कुछ शिकायतें आई थीं, जिसके कारण नए वेंडिंग साइट की पहचान की जा रही है. पीठ ने यह भी कहा कि छोटे दुकानदारों के हक में निर्णय में पहले ही काफी समय लग चुका है, इसलिए निगम को याचिकाकर्ताओं को हर हाल में 10 जुलाई तक स्थान प्रदान करना चाहिए.

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तीन दुकानदारों ने दायर की थी याचिका

तीन रेहड़ी-पटरी वालों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने बताया कि वे एमसीडी के तहबाजारी नियमों के तहत काम करते हैं. पहले वे बापू मार्केट, कश्मीरी गेट पर अपनी दुकान लगाते थे, लेकिन निगम ने उन्हें अप्रैल से जुलाई के बीच स्थानांतरण पत्र देकर वहां से हटने के लिए कहा. इसके बाद उन्हें माता सुंदरी मार्ग पर दुकान लगाने का निर्देश दिया गया, लेकिन स्थानीय निवासियों ने उन्हें वहां दुकान लगाने से रोक दिया. इस स्थिति के कारण उनका व्यवसाय पिछले तीन वर्षों से ठप है, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गई है.