उमेश मिश्रा-
फिर एक बार छत्तीसगढ़ ने देश का विश्वास जीता है। फिर एक बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की खांटी छत्तीसगढ़िया छवि और जमीनी रणनीति तारणहार बनी है।फिर एक बार साबित हुआ कि लीडर का जुनून और जनता से जुड़ाव बड़े से बड़े मर्ज का इलाज है ,वह मर्ज ‘कोरोना ‘ जैसा महाप्रलयंकारी अजूबा क्यों ना हो।
‘कोविड- 19 ‘ जिस रूप और जिस दौर में सात समंदर और सैकड़ों नदियों- पहाड़ों को लांघता हुआ भारत आया,उसकी रफ़्तार को समय रहते समझ लेना राज्य के शीर्षतम नेतृत्व का कौशल ही था,वरना देश से पहले प्रदेश में ‘लॉक डाउन’ का मानस नहीं बन पाता।उस समय जब जन -जमाव वाले सारे केंद्र और आयोजन बंद किए गये तब तक आम तौर पर लोगों को लग रहा था कि कुछ कुछ अतिरेक सावधानी बरती जा रही है,शायद ये जरूरी नहीं।लेकिन नेतृत्व वही जो आगत को भांप ले और ऐसी सधी चाल से चलना शुरू कर दे,जिससे अद्वितीय समस्या की घड़ी में भी जनता में भय ना फैले,वह हिम्मत के साथ स्वत: सरकार के फैसलों में भागीदारी बने,और राज्य के मुखिया की सलाह के मर्म को समझे। इस तरह सोशल जमावाड़े के खिलाफ ‘फीजिकल डिस्टेंन्सिग ‘का मंत्र यथा समय जनता के कानों में फूंकते हुए सही दिशा में सही कदम उठाने की जो शुरूआत हुई,उससे 18 दिसंबर के बाद का वह दौर भी याद आया कि मुखिया ने संकट की इस घड़ी में फिर एक बार अपनी वही चिर-परिचित रणनीति ही अपनाई है।’कोविड -19′ और छत्तीसगढ़ की जनता के बीच मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल दीवार की तरह डटकर खड़े हो गए हैं। चौतरफ़ा चुनौतियां के बीच
कहीं बेहद सख्ती , कहीं बेहद नरमी,तो कहीं लचीले आर्थिक,सामाजिक, प्रशासनिक त्वरित फैसलों की जरूरत थी। संक्रमण पर नियंत्रण, संक्रमितों का उपचार, रोज कमाने -खाने वाले लोगों को तत्काल राहत, दूसरे प्रदेशों में फंसे छत्तीसगढ वासियों के साथ ही दूसरे प्रदेशों के यहां फंसे होने की स्थिति में राहत,और इन सबके बावजूद गांवों में यथा संभव कृषि व वनोपज आश्रित आजीविका का सुरक्षित संचालन जैसे कार्यों में संतुलन तो किसी सर्कस के संचालन जैसा दुरुह कार्य ही कहा जाएगा।इस बीच स्वास्थ्य अधोसंरचना का विस्तार और हर ज़िंदगी का गरिमापूर्ण निर्वाह भी जरूरी।इतना ही नहीं चिकित्सक,नर्सिंग स्टाफ, सफाईकर्मी , आंगनवाड़ीकर्मी, पुलिसकर्मी आदि अमले के साथ व्यापक समाज की हौसला -अफ़जाई की जिम्मेदारी भी श्री बघेल ने भली-भांति संभाली।जनता का हर वर्ग श्री बघेल के बताए रास्तों पर चल पड़ा।
सवा साल पहले मु्ख्यमंत्री श्री बघेल ने राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक आधारभूत ढांचा खड़ा करने की मुहिम छेड़ी थी। 2500 रू.क्विंटल में धान,कृषि भूमि का चार गुना मुआवजा, 4000रू.मानक बोरा तेंदूपत्ता मजदूरी, ऐतिहासिक क़ृषि ऋण माफी, 23 लघु वनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी, सिंचाई कर माफी, आदिवासियों की जमीन वापसी,फर्जी मामले-मुकदमे वापसी ,छोटे भूखंडों की ख़रीद -बिक्री,फूड पार्क की स्थापना की दिशा में बढ़ते कदमों,भूमिहीनों और राजस्व मामलों के सरल समाधान जैसे अनेक फैसलों से राज्य में उत्साह का सकारात्मक वातावरण बना।आज कोरोना संकट के घटाटोप अंधेरे के बीच छत्तीसगढ़ से फूटती उजाले की किरण भारतीय रिज़र्व बैंक देख रहा है और देश -दुनिया में निरंतर पैर पसारते’ रेड हॉट स्पॉट ‘के बीच छत्तीसगढ़ ‘ग्रीन स्पॉट’ के रूप में उभर रहा है ,तो इन इबारतों का हर हर्फ़ पढ़ा जाएगा।आर्थिक मंदी को मात देने वाला छत्तीसगढ़ ‘कोरोना’ को भी मात देता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ी मॉडल एक बार फिर देश और दुनिया का नया विश्वास बनकर दमकने को तैयार है। घोषित वैश्विक महामारी के दौर में यदि ‘नो केजुअल्टी’ के तमगे के साथ उभरते राज्य को इन्हीं संदर्भों में विश्व- विजेता कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लेखक उमेश मिश्रा,
संयुक्त सचिव, छत्तीसगढ़ शासन तथा संवाद के एडीशनल सीईओ