अनिल सिंह कुशवाह,भोपाल. अंततः कमलनाथ को मध्य प्रदेश में कांग्रेस का वनवास खत्म करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। उनकी इस ताजपोशी में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ दिग्विजय सहित सभी नेताओं के लिए ज्यादा फिलेक्सी हैं। लेकिन, 71 साल के कमलनाथ के सामने अब कई बड़ी चुनौतियां हैं.

अनिल सिंह कुशवाह

1993 में दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाने में कमलनाथ और सुरेश पचौरी की मुख्य भूमिका थी। तब दिग्विजय सिंह कमलनाथ को बड़ा भाई और पचौरी को छोटा भाई कहकर संबोधित करते थे। लेकिन, बाद में तीनों के बीच रिश्ते बिगड़े भी। पर दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के दौरान कमलनाथ ने दिग्विजय को बड़ा भाई कहकर इस दोस्ती में फिर से फूल खिला दिए। दिग्विजय सिंह के गुरू शंकराचार्य स्वरूपानन्द कमलनाथ के भी गुरू बन गए। तभी से माना जा रहा था कि ‘चाणक्य’ दिग्विजय सिंह को नाम आगे करने के लिए भरोसेमंद चेहरा मिल गया है.

दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को यह समझाने में सफल रहे कि सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से बीजेपी फिर महाराजा और आम आदमी के सीएम के बीच मुकाबले को पेश कर सकती है। ऐसे में आलाकमान ने दो प्रमुख चेहरों में अनुभवी कमलनाथ को प्राथमिकता दी। लेकिन, चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर ये भी बता दिया कि सिर्फ कमलनाथ ही आलाकमान की इकलौती पसंद नहीं है.

इंदौर के युवा नेता एवं ओबीसी वर्ग से आने वाले जीतू पटवारी, सागर के दलित चेहरे सुरेन्द्र चौधरी, ग्वालियर जिले के सक्रिय नेता रामनिवास रावत और धार-झाबुआ जिले के युवा आदिवासी चेहरे बाला बच्चन को पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। अब इन्हें मिलकर 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए एकजुट प्रयास करना हैं। सिंधिया को भी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष का पद देकर संतुलन बिठाने की कोशिश की है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरना कमलनाथ के लिए बड़ी चुनौती होगी। मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल तो है। लेकिन, ये माहौल कांग्रेस के पक्ष में है, ऐसा कोई नहीं मानता। ऐसे में कैसे 15 साल से सत्तारूढ़ बीजेपी की एंटी इनकम्बेंसी को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ा जाए, ये कमलनाथ को सोचना होगा ?

कमलनाथ के पक्ष में सबसे बड़ी बात उनका सियासी अनुभव है। कलकत्ता के रहने वाले कमलनाथ 1980 के चुनाव में पहली बार संजय गांधी के कहने पर छिंदवाड़ा से चुनावी मैदान में उतरे तो अब तक वहीं पर कायम हैं। एक लोकसभा चुनाव छोड़ 9 चुनाव जीतने वाले कमलनाथ ने आदिवासी जिले छिंदवाड़ा का कायाकल्प कर रखा है। वे छिंदवाडा के विकास मॉडल को आगे जाकर भुना सकते हैं। जनता को बता सकते हैं कि छिंदवाड़ा जैसा ही विकास वे पूरे प्रदेश का कर सकते हैं। उनकी बात कांग्रेस के सारे नेताओं के साथ ही जनता भी सुनती है। लेकिन, दिल्ली और छिंदवाड़ा की राजनीति करते-करते प्रदेश के बाकी हिस्से से वे दूर रहते हैं। पर संसाधनों की बहुलता कमलनाथ की बड़ी ताकत है। कमलनाथ बड़े कारोबारी हैं.

देखना है, 71 साल के कमलनाथ चुनाव के दौरान कितनी भागदौड़ कर पाएंगे ? उनका मुकाबला शिवराज सिंह चौहान से है, जो सुबह से देर रात तक जनता के बीच में रहते हैं। कमलनाथ को बड़े भाई के रूप में दिग्विजय सिंह तो मिल गए, लेकिन सिंधिया का सहयोग भी बहुत मायने रखेगा।