रायपुर। शिक्षा के अधिकार अधिनियम तहत स्कूलों में भर्ती नहीं होने पर शिक्षकों ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाया है. त्रैमासिक परीक्षा के लिए टाइम टेबल जारी होने के बाद भी महज 33 हजार सीटों की भर्ती होना विभाग की नाकामी है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य पर पानी फिर गया है.
वीरेंद्र दुबे प्रांताध्यक्ष शालेय शिक्षक संघ ने कहा कि प्रदेश में लगभग 50,000 गरीब बच्चे प्रवेश से वंचित हैं. शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही सामने आई है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रतिभावान गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे शहर के प्राइवेट स्कूल से ग्रामीण बच्चे प्रतियोगिता कर सकें और अपनी क्षमता का विकास करें,
इस वर्ष छत्तीसगढ़ में लगभग 83 हाजर सीट उपलब्ध हैं, लेकिन अभी तक मात्र 33000 बच्चों का ही एडमिशन हो पाया है. गरीब तबके के बच्चे प्रवेश प्रक्रिया से वंचित हो गए. सत्र प्रारंभ हुए लगभग 3 माह बीत चुके हैं, और त्रैमासिक परीक्षा की तैयारी चल रही है. ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि प्रवेश से वंचित बच्चों के लिए जिम्मेदार कौन है. यदि इन बच्चों को प्रवेश दिया भी जाता है, तब 3 माह की भरपाई कैसे हो पाएगी.
वीरेंद्र दुबे ने कहा है कि प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा गरीब बच्चे भुगत रहे हैं. मुख्यमंत्री तत्काल संज्ञान लें, और शेष बचे लाभार्थी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ को तत्काल विराम देवें. सभी बच्चों के साथ क्लास में बैठाकर पिछले तीन माह के कोर्स को कवर करना शिक्षकों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
उन्होंने कहा कि अभी जिन विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाया गया है वो तो तीन माह पिछड़े हैं, लेकिन दूसरे चरण की प्रक्रियाधीन है. जब तक प्रक्रिया होगी और आगामी जो 50 हज़ार विद्यार्थियों की भर्ती होना है, वह और भी बहुत ज़्यादा पिछड़ जाएंगे. ऐसे में इनके लिए विशेष रणनीति बनाकर पढ़ाई करवाने की ज़रूरत होगी.
गौरतलब है कि स्कूल खुले तीन माह हो गया है. त्रैमासिक परीक्षा के लिए टाइम टेबल भी जारी हो गया है, लेकिन शिक्षा के अधिकार के तहत 50 हज़ार विद्यार्थी अपनी शिक्षा से वंचित है, उनका प्रवेश भी नहीं हुआ है. प्रदेश में 83,000 शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत सीट है, और महज़ 33, हज़ार सीटों में प्रवेश हुआ है.