शिखिल ब्यौहार। मध्यप्रदेश में तबादलों की बहार जारी है। इस बहार में गड़बड़ी और आरोपों के साथ सवाल भी हजार है। दरअसल, अब मामला प्रदेश के उस विभाग का सामने आया है जिसमें सबसे ज्यादा ट्रांसफर की डिमांड रही। विभाग का नाम शिक्षा विभाग। जिसमें स्वैच्छिक तबादलों के लिए 44 हजार 765 शिक्षकों ने आवेदन किया था। लेकिन 7 हजार 355 के ही ट्रांसफर हुए। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह थोकबंद तबादले भी सरकार की तय डेडलाइन के बाद हुए। मामले को लेकर शिक्षा विभाग के कर्मचारी संगठनों में रोष है। गड़बड़ी के आरोप के साथ संगठनों ने कहा कि सरकार को विभागीय तबादलों की तारीख बढ़ाई जाना चाहिए।

तबादलों में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़े के आरोप शिक्षा विभाग पर ही लगे हैं। विभागीय तबादलों के लिए नीति में दो तरह की व्यवस्था दी गई है। स्वैच्छिक और प्रशासनिक तबादले। नियम यह भी है कि तबादलों के आदेश में यह स्पष्ट लिखा जाए कि आखिर किस व्यवस्था के तहत ट्रांसफर आदेश जारी किया गया है। प्रशासनिक तबादलों में सरकार पर भार भी आता है क्योंकि यह प्रशासनिक मंशा के अनुरूप होता है। लेकिन, स्वैच्छिक तबादलों में यह शर्त लागू नहीं होती बल्कि आवेदनकर्ता की परिस्थिति ही आधार होता है। सरकार ने तमाम बैठकों में स्वैच्छिक तबादलों पर जोर दिया। अधिकारियों की नीयत पर किसी भी प्रकार का सवाल खड़ा न हो, लिहाजा आदेश में न स्वैच्छिक का उल्लेख किया गया न प्रशासनिक तबादले का।

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धांधली के साथ मनमानी, अब तारीख बढ़ाएं या कारण बताएं

इस मामले पर विभागीय कर्मचारी नेता रमेश राठौर ने कहा कि शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा ट्रांसफर की अर्जियां दायर की गई। व्यवस्था ऑनलाइन की थी, लेकिन कई ट्रांसफर ऑफलाइन हुए। ट्रांसफर के लिए अफसरों ने जमकर धांधली भी की। उन्होंने कहा कि मनमानी को छिपाने के लिए ऐसी व्यवस्था कि गई कि अब ट्रांसफर आदेश भी संबंधित आवेदक के पास ही पहुंचता है। यह पहले सार्वजनिक हुआ करता था। इसके अलावा आदेश में स्वैच्छिक और प्रशासनिक तबादले की टीप के आदेश का पालन नहीं किया गया। मामले को पूरी तरह से दबाने के साथ अपने बचाव के लिए अफसरों की यह चाल ही मानिए। उन्होंने सरकार से मांग की है कि हजारों की संख्या में जिनके तबादले नहीं हुए उसका कारण बताना चाहिए। साथ ही तबादलों की तारीख आगे बढ़ाई जानी चाहिए।

ट्रांसफर की डेडलाइन के बाद आदेश और साजिश

ट्रांसफर को लेकर विभागीय बैठकों में कई बार इस बात पर जोर दिया गया था कि अंतिम तारीख के बाद तबादला आदेश जारी न हों। इसके बाद भी लोक शिक्षण संचालनालय ने अंतिम तिथि बीत जाने के दो दिन बाद सबसे ज्यादा ट्रांसफर आदेश जारी किए। यह आदेश 19 और 20 जून को जारी किए थे। कार्रवाई की डर से नाम न छापने की शर्त पर आवेदकों ने बताया कि ज्यादातर ट्रांसफर सांठगांठ के चलते बंच में हुए। जिन्होंने नीति नियम का पालन कर आवेदन किया वे सिर्फ बंगले और संचालनालय के चक्कर काटते रह गए। साथ ही यह बताया कि आदेश में पारदर्शिता नहीं होने के कारण न्यायालय में जाने का कोई फायदा नहीं होगा। धांधली के लिए यह अफसरों की सोची समझी रणनीति का बड़ा हिस्सा है।

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शिक्षा विभाग में कमीशनखोरों और दलालों का बोलबाला- कांग्रेस

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता विवेक त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षा विभाग में तबादलों के लिए विशेष दलाल और कमीशनखोरों को जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रदेश में अब सारे उद्योग तो बंद हो गए हैं सिर्फ एक तबादला उद्योग जरूर चल रहा है। सबसे ज्यादा परेशान भी शिक्षा विभाग के कर्मचारी हुए। सरकार ने आश्वासन दिया गया था कि पूरी पारदर्शिता के साथ ट्रांसफर होंगे। लेकिन, लंबे समय तक पोर्टल बंद रहा और जब प्रक्रिया शुरू हुई तो गड़बड़ी, कमीशनखोरी और दलालों के माध्यम से शुरू हुई। उनका ही ट्रांसफर हुआ जिन्होंने रिश्वत दी। आज भी कई शिक्षक परेशान है।

बीजेपी बोली- आरोप निराधार, कांग्रेस ने कुत्ते-बिल्लियों तक के ट्रांसफर किए थे

बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता शिवम शुक्ला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को ऐसे आरोप लगाने का भी नैतिक अधिकार नहीं है। क्योंकि कांग्रेस शासनकाल के दौरान तो कुत्ते बिल्लियों तक के ट्रांसफर किए गए थे। डॉ मोहन सरकार ने नीति बनाकर पारदर्शी व्यवस्था के तहत तबादलों पर काम किया। कांग्रेस के शासनकाल में तबादला उद्योग था। लिहाजा कांग्रेस को यही नजर आता है।

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