संजीव शर्मा, कोण्डागांव. जिला प्रशासन भले ही कोण्डागांव को नक्सल मुक्त घोषित करने का दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत शिक्षा के क्षेत्र में बदहाली की कहानी बयां करती है. नक्सलियों का खौफ तो खत्म हो गया, लेकिन मांझानार, उहुपाल और तुमड़ीबाल जैसे दूरस्थ गांवों में बच्चों की पढ़ाई अब भी जर्जर टीन शेड और अधूरी दीवारों के बीच चल रही है.

 मांझानार में 30, उहुपाल में 13 और तुमड़ीबाल में 21 बच्चे प्राथमिक स्कूलों में पढ़ते हैं. लेकिन इन स्कूलों में न पक्के कमरे हैं, न फर्नीचर, न शौचालय और न ही मध्यान्ह भोजन के लिए रसोई. बरसात में टपकते पानी, सर्दियों में ठंडी हवाओं और दीवारों के छेदों से सांप-बिच्छुओं का खतरा बच्चों की पढ़ाई को मुश्किल बना देता है. बच्चे खुले में या जर्जर टीन शेड के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. दस्तावेज रखने की अलमारी तक नहीं है, जिससे स्कूल का रिकॉर्ड भी असुरक्षित है.

2009 के नक्सली हमले का दंश

ग्रामवासियों के अनुसार, 2009 में नक्सली हमले में इन गांवों के स्कूल भवनों को उड़ा दिया गया था. तब से लेकर अब तक, 15 साल बाद भी इन स्कूलों का पुनर्निर्माण नहीं हो सका. 2021 में कोण्डागांव को नक्सल मुक्त घोषित किया गया, लेकिन बच्चों की शिक्षा की स्थिति जस की तस बनी हुई है. मांझानार में एक शिक्षक, उहुपाल में दो और तुमड़ीबाल में एक शिक्षक के भरोसे स्कूल चल रहे हैं.

मांझानार की शिक्षिका ज्योति कश्यप और उहुपाल के शिक्षक कुरसु राम कश्यप ने बताया, “पहली से पांचवीं तक की प्राथमिक शाला है, लेकिन भवन के नाम पर सिर्फ जर्जर टीन शेड है. शौचालय नहीं होने से बच्चे खुले में जाते हैं. पास में नदी होने से हमेशा डर बना रहता है. कोई जरूरी काम हो तो स्कूल बंद करना पड़ता है. 2009 से यही हाल है, तस्वीरें खुद सब बयां करती हैं.”

गांववासियों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. उनका कहना है, “नक्सल मुक्त जिला तो बन गया, लेकिन हमारे बच्चों की पढ़ाई अब भी असुरक्षित माहौल में हो रही है. आखिर कब मिलेगा बच्चों को पक्का और सुरक्षित स्कूल?” नक्सलवाद खत्म होने के बावजूद बस्तर में शिक्षा अब भी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान ने कहा, “इन स्कूलों की स्थिति की जानकारी है. नए भवनों के लिए प्रस्ताव भेजा गया है और शिक्षकों को भी वहां भेजा जा रहा है. जल्द ही समस्या के समाधान का प्रयास किया जाएगा.”