रायपुर। स्कूल स्पेशल की इस दूसरी कड़ी में सवाल दिव्यांगों को शिक्षा के अधिकार का ? जी हां स्कूल शिक्षा मंत्री जी दिव्यांगजन के परिजन आप से पूछ रहे हैं कि क्या उनके बच्चों को शिक्षा मिलेगी?
लल्लूराम डॉट कॉम में स्कूल स्पेशल की पहली कड़ी में कचना के बीएसयूपी स्कूल की रिपोर्ट थी. दूसरी कड़ी में रिपोर्ट कुकरबेड़ा बस्ती की. आप सब इस रिपोर्ट में जानेंगे कि पं. रविशंकर शुक्ल जैसे विश्वविद्यालय के पीछे स्थित इस बस्ती में दिव्यांगजन कैसे और क्यों स्कूल जाने से वंचित हैं. छत्तीसगढ़ एक्शन रिसर्च टीम और शिक्षा के अधिकार कानून फोरम के संयोजक गौतम बंधोपाध्याय के साथ हम रायपुर नगर निगम क्षेत्र के वार्ड 14 स्थित कुकुरबेड़ा बस्ती पहुंचे. इस बस्ती में मितानिनों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 10 बच्चें दिव्यांगजन हैं. इसमें कुछ दृष्टि बाधित, कुछ श्रणव बाधित, कुछ अस्थि बाधित.
दृष्टिबाधित अंगत सिंह जो चाहता है वो मिल नहीं रहा
हम सबसे पहले शासकीय प्राथमिक शाला के करीब स्थित ही तिलक सिंह जुनेजा के घर पहुंचे. निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार के तिलक सिंह का एक बेटा बचपन से दृष्टिबाधित है. तिलक सिंह के इस चंचल बेटे का नाम अंगत सिंह जुनेजा है. अंगत को शायद इसका एहसास भी नहीं कि उनकी दुनिया रंगीन होकर भी उनके लिए रंगहीन है. हालांकि अंगत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क तो ये है कि शिक्षा के अधिकार कानून के बाद भी दिव्यांग अंगत को शिक्षा नसीब नहीं है. जबकि अंगत से अगर पढ़ाई के बारे में कोई पूछे तो चहकर कहता है हां पढ़ना चाहता, स्कूल जाना चाहता हूँ.
आज अंगत 9 साल का हो चुका है. जब 5 साल का था तो माता-पिता उन्हें पड़ोस के ही इस सरकारी स्कूल में प्रवेश करा आए. लेकिन कुछ दिनों बाद स्कूल शिक्षकों ने अंगत को पढ़ा पाने में असमर्थता जाहिर कर दी. चार दिन में अंगत घर की चार दीवारियों में कैद हो गया. मां-बाप अंगत को कहीं और शिक्षा के लिए भेज पाने में समर्थ नहीं. उन्हें इसकी ठीक से जानकारी भी नहीं कि दिव्यांगजनों के लिए कोई विशेष स्कूल भी सरकार चलाती है. लिहाजा घरवालों ने भी कोई प्रयास नहीं किया और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने भी कोई मदद अंगत के परिवार वालों की नहीं की.
क्या स्कूल में नहीं पड़ेंगे दीपांशु के कदम ?
अंगत के घर से उनकी व्यथा को सुन और समझकर हम अस्थि बाधित दिव्यांग दीपांशु देवांगन के घर पहुंचे. 6 साल का दीपांशु चल नहीं सकता. पैरों में कमजोरी इतनी है कि वो बिना किसी सहारे के ठीक से बैठ भी नहीं सकता. समस्या ये भी है कि बोल पाने में ज्यादा समर्थ नहीं.
लेकिन ये तमाम समस्याएं शायद समस्याएं नहीं रहती अगर दीपांशु को शिक्षा नसीब होती. अंगत की तरह दीपांशु को आरटीई कानून का कोई लाभ नहीं मिल रहा. दीपांशु के पिता भीम कुमार कहते हैं कि सरकारी स्कूल में पता नहीं उन्हें प्रवेश मिलेगा या नहीं, क्योंकि वो तो ठीक से बैठ भी नहीं पाता. ये पता चला है कि प्राथमिक शाला में कोई विशेष शिक्षक और रैम्प नहीं है.
दीपांशु की तरह ही प्यारी बच्ची शकुन विश्वकर्मा मिली. 7 साल की शकुन का तो कोई कसूर नहीं है सिवाय इसके की भगवान ने उसके पैरों में अन्य बच्चों की तरह साहस और शक्ति नहीं दी. लेकिन इसके चलते उन्हें शिक्षा से वंचित क्यों रखा जाए? जाहिर ये सवाल शकुन के माता-पिता दो साल से पूछ रहे हैं, लेकिन जवाब कहीं से ठीक मिल नहीं रहा. शकुन के पिता नेमु नारायण का कहना है कि वो अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन मोहल्ले में स्थित प्राथमिक शाला में अस्थि बाधित बच्चों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं. यही वजह है कि वे चाहकर भी उन्हें स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं.
बस्ती में ही एक और दिव्यांग पूजा सिंह से मुलाकात हुई. पूजा की समझ आम बच्चों की तरह सामान्य नहीं है. पूजा मानसिक रूप से थोड़ी कमजोर है. यही कमजोरी पूजा की शिक्षा में बाधक है. 14 वर्षीय पूजा के पिता राजेन्द्र सिंह का कहना है कि स्कूल में प्रवेश तो करा दिए, लेकिन वो सामान्य बच्चों के साथ पढ़ ना पाई. ट्यूशन से भी पढ़ाने की कोशिश की लेकिन विफल रहे. दिक्कत विशेष शिक्षकों के अभाव को लेकर थी.
शासकीय प्राथमिक शाला के शिक्षकों का कहना है कि ऐसे बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा. विशेष बच्चों के लिए अलग स्कूल होता है. सभी बच्चों के बीच अलग विशेष बच्चों को ध्यान कैसे दिया जा सकता है.
कानून का नहीं हो रहा पालन
दिव्यांग बच्चों पर केस स्टडी करने वाले रिसर्च टीम और आरटीई फोरम के संयोजक गौतम बंधोपाध्याय का कहना है कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 6 से 14 वर्ष आयु के प्रत्येक बच्चें को पढ़ने का अधिकार है. सभी निःशक्त बच्चों को निःशक्त व्यक्ति( समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 के 5 के उपबंधों के अनुसार निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए. गौतम जी बड़े अफसोस के साथ कहते हैं कि जहां सरकार ये दावा करती है कि हम प्रत्येक बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं वहां ऐसी स्थिति क्यों. सवाल ये भी उठाते हैं कि क्या सरकार दिव्यांगजनों के लिए कोई सर्वें करा रही है, दिव्यांग आयोग है ,तो आयोग की टीम ऐसे दिव्यांगजनों दूर क्यों है?
कश्यप और बोरा जी बस ये रिपोर्ट पढ़ लीजिएगा
स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप जी और समाज कल्याण विभाग के सचिव सोनमणि बोरा जी, हम आप दोनों को ही फोन नहीं लगा रहे हैं. फोन लगाके पूछेंगे क्या और आप बताएंगे क्या. आपके पास इतना वक्त़ तो होगा नहीं कि आप इतनी लंबी रिपोर्ट सुन पाए. हम चाहते भी नहीं कि आप सिर्फ सुने, बल्कि हम तो ये चाहते हैं कि आप स्वयं कुकुरबेड़ा जाकर देखें. आप मिले उन दिव्यांगजनों से जो शिक्षा से वंचित हैं. आप मिले उनसे जो पढ़ना चाहते हैं. आप मिले उनसे जो आपके भरोसे और मदद के इंतजार में हैं. बेशक आप लोग व्यस्त रहते हैं. समय निकाल पाना मुश्किल होता होगा, क्योंकि फाइल निपटारा से लेकर मेल-मुलाकात, दौरा कार्यक्रम, भूमिपूजन-लोकार्पण, बैठक-चर्चा की आवश्यक दिनचर्या रहती होगी. लेकिन इस दिनचर्या में कोई एक दिन कुकुरबेड़ा के लिए भी निकाल लीजिएगा. क्या पता जिन्हें भगवान ने लाचार बना दिया है उन्हें आप ही ताकतवर बना दे, आप ही उनके लिए भगवान बन जाए, आपकी ही जय-जय हो जाए.